
गौहाटी हाई कोर्ट ने असम में भोगाली बिहू त्योहार के दौरान होने वाली भैंस और बुलबुल पक्षी की लड़ाई पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) को खारिज कर दिया, जिसमें इन लड़ाइयों को आयोजित करने की अनुमति दी गई थी।
यह फैसला न्यायमूर्ति देवाशीष बरुआ की एकल पीठ ने सुनाया। यह सुनवाई पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) इंडिया द्वारा दायर याचिका पर हुई। पेटा ने अदालत से राज्य सरकार द्वारा 27 दिसंबर, 2023 को जारी किए गए एसओपी को खारिज करने का अनुरोध किया था।
याचिका में पेटा ने तर्क दिया कि भैंस और बुलबुल पक्षी की लड़ाई न केवल पशु क्रूरता अधिनियम, 1960 का उल्लंघन करती है, बल्कि यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के भी खिलाफ है। याचिकाकर्ता ने इस पर जोर दिया कि यह प्रथा जानवरों और पक्षियों के प्रति अनावश्यक हिंसा को बढ़ावा देती है, जो कानूनन अपराध है।
राज्य सरकार ने अपनी दलील में कहा कि यह परंपरा भोगाली बिहू त्योहार का एक अहम हिस्सा है और स्थानीय लोगों की सांस्कृतिक आस्थाओं से जुड़ी हुई है। सरकार ने तर्क दिया कि इन आयोजनों को एसओपी के जरिए नियंत्रित करने का प्रयास किया गया था, ताकि इन्हें सुरक्षित और संगठित तरीके से किया जा सके।
न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि परंपरा और संस्कृति के नाम पर किसी भी प्रकार की क्रूरता को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। अदालत ने कहा कि संविधान और कानून सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और मानवीय व्यवहार को सुनिश्चित करते हैं।न्यायालय ने एसओपी को खारिज करते हुए इन लड़ाइयों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। साथ ही, अदालत ने यह भी कहा कि राज्य सरकार को ऐसे आयोजनों पर सख्त निगरानी रखनी चाहिए और पशु क्रूरता अधिनियम का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना चाहिए।
भोगाली बिहू असम का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे हर साल जनवरी में मनाया जाता है। यह फसल कटाई का त्योहार है और राज्य में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पारंपरिक खेल, नृत्य, और सांस्कृतिक कार्यक्रम इसके मुख्य आकर्षण होते हैं।गौहाटी हाई कोर्ट का यह फैसला पशु अधिकार संगठनों के लिए एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है। पेटा इंडिया ने इस पर खुशी जताते हुए कहा कि यह फैसला जानवरों के प्रति संवेदनशीलता और मानवता को प्रोत्साहित करेगा।