बालाघाट, मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश के बालाघाट ज़िले के पचामा दादर इलाके में आज तड़के सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच हुई एक तीखी मुठभेड़ में चार नक्सली मारे गए, जिनमें तीन महिलाएं भी शामिल थीं। यह मुठभेड़ बिथली थाना क्षेत्र के समीप घने जंगलों में हुई, वह इलाका जो वर्षों से नक्सली गतिविधियों के लिए कुख्यात रहा है। स्पेशल डीजी (नक्सल) पंकज श्रीवास्तव के अनुसार, यह कार्रवाई एक खुफिया इनपुट पर आधारित थी और पूरी तरह सुनियोजित थी। मौके से बरामद हथियार जिनमें हैंड ग्रेनेड, रॉकेट लॉन्चर, राइफल और भारी मात्रा में कारतूस शामिल हैं, इस बात का संकेत हैं कि इन नक्सलियों की योजना बड़ी थी।
सौभाग्य से, इस ऑपरेशन में सुरक्षा बलों का कोई जवान हताहत नहीं हुआ। राज्य सरकार ने इस सफलता को नक्सलवाद के खिलाफ अपनी रणनीति की मजबूती का प्रमाण बताया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मुठभेड़ के बाद जारी बयान में कहा, “यह कार्रवाई हमारे उस संकल्प की पुष्टि करती है, जिसके तहत हम मार्च 2026 तक मध्य प्रदेश को नक्सल मुक्त देखना चाहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में हमारी सरकार सुरक्षा के साथ-साथ शांति और विकास का वातावरण बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत है।”
इस कार्रवाई ने न केवल प्रशासन को मजबूती दी है, बल्कि उन आम लोगों के दिलों में भी उम्मीद की एक नई किरण जगा दी है, जो वर्षों से डर और असुरक्षा के साए में जीवन बिता रहे थे। बालाघाट के जंगलों में बसे गाँवों के लिए यह कोई मामूली खबर नहीं, यह उन लोगों के लिए आश्वासन है जो हर शाम यह सोचकर दरवाज़े बंद कर लेते थे कि रात सुरक्षित गुज़रेगी या नहीं।
ऐसे ही एक गाँव में रहने वाले किराना दुकानदार श्यामलाल (बदला हुआ नाम) अपनी भावनाएं साझा करते हैं। वे कहते हैं, “अब तक तो हमारे बच्चे खिड़की के पास जाकर बाहर झाँकने से भी डरते थे। जब सुना कि कुछ नक्सली मारे गए हैं, तो एक अजीब सा मिश्रित अहसास हुआ, डर भी था, लेकिन राहत भी। अब पहली बार लग रहा है कि शायद गाँव में फिर से अमन लौट सकता है, और हम सामान्य ज़िंदगी जीने का सपना देख सकते हैं।” मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी यह साफ किया है कि सरकार की रणनीति केवल सैन्य कार्रवाई तक सीमित नहीं है। वे कहते हैं, “हम बंदूक से ज़्यादा भरोसा संवाद और पुनर्वास पर करते हैं।
जो लोग भ्रमित होकर हिंसा की राह पर चल पड़े हैं, उनसे हम अपील करते हैं कि हथियार छोड़ें और एक नई शुरुआत करें। सरकार उन्हें पुनर्वास का मौका देगी ताकि वे अपने और अपने परिवार के लिए एक बेहतर जीवन चुन सकें।” बालाघाट के इन जंगलों में जो डर सालों से पसरा हुआ था, वह अब धीरे-धीरे छंटता हुआ दिखाई दे रहा है। यह मुठभेड़ केवल एक सुरक्षा अभियान की सफलता नहीं है, बल्कि उस टूटे हुए भरोसे की मरम्मत की शुरुआत है, जो समय के साथ लोगों के दिलों से मिट गया था। अब जब सरकार सुरक्षा के साथ-साथ विकास और मानवीय दृष्टिकोण से आगे बढ़ रही है, तो उम्मीद है कि यह इलाका भय की परछाइयों से निकलकर शांति और समृद्धि की ओर बढ़ेगा।