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दिल्ली विधानसभा चुनाव- वोटिंग खत्म, अब नतीजों का इंतजार

कुल 60.4 फीसदी वोटिंग, मुस्लिम बहुल सीटों पर मतदाताओं में दिखा उत्साह

दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों के लिए वोटिंग खत्म हो गई , कुल 60.4% मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इस बार पिछली बार की वोटिंग के मुकाबले करीब 2 फीसदी कम मतदान हुआ 2019 विधानसभा चुनाव में 62.59% मतदान रिकॉर्ड किया गया था। अगर पिछले तीन विधानसभा चुनाव से तुलना की जाए तो इस बार राजधानी में  सबसे कम मतदान हुआ। साल 2013 में 66%, 2015 में 67.5% तो वहीं 2019 में 62.59% वोटिंग हुई थी। गौरतलब है कि तीनों चुनावों में आम आदमी पार्टी की सरकार बानी थी। 2013 के चुनावों में बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जनादेश मिला था पर आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाने में सफलता। 2015 और 2019 चुनावों में आम आदमी पार्टी जबरदस्त जनसमर्थन हासिल हुआ जबकि कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ़ हो गया और बीजेपी भी हाशिये पर चली गई.

इस बार के चुनावों में मतदाताओं में मतदान के प्रति उदासी दिखाई दी जबकि मुस्लिम बहुल सीटों पर बंपर मतदान हुआ है। मुस्तफाबाद विधानसभा सीट पर सर्वाधिक 69% वोटिंग हुई जबकि दूसरे स्थान पर सीलमपुर विधानसभा (68.6%) में मतदान हुआ तो वही दक्षिणी दिल्ली के महरौली सीट पर सबसे कम 53% वोटिंग हुई। सुबह चार घंटे वोटिंग काफी सुस्त रही हालाँकि दोपहर बाद लोग घरों से निकलकर मतदान केंद्र तक पहुंचे और शाम 6 बजे तक दिल्ली में कुल 60.4% वोटिंग दर्ज की गई.

नतीजों का इंतज़ार, एग्जिट पोल्स में दिखी सरकार विरोधी लहर

चुनाव ख़तम होने के बाद देर शाम तक कुछ एग्जिट पोल्स के अनुमान भी देखने को मिले। करीब आधा दर्जन एग्जिट पोल्स में बीजेपी के पक्ष में रुझान दिखाई दिया हालांकि 2 एग्जिट पोल्स आम आदमी पार्टी की सत्ता में वापसी का भी इशारा कर रही हैं। पिछले 10 सालों से दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी के लिए कुर्सी बचाये रखने की चुनौती है तो वही बीजेपी के लिए 27 साल का सत्ता से वनवास ख़त्म करने का मौका। बीजेपी ने इस चुनाव में गन्दा पानी, गन्दी यमुना, शराब घोटाला, गड्ढे युक्त सड़कें और 10 साल की आम आदमी पार्टी की सरकार की नाकामी को मुद्दा बनाया तो वही आम आदमी पार्टी ने पिछले 10 सालों के किये गए काम के आधार पर दिल्ली की जनता से एक और मौका माँगा। अब देखने होगा की दिल्ली की जनता का केजरीवाल पर भरोसा कायम रहता है या फिर मोदी की गारंटी पर। नतीजा जो भी हो इतना तो तय है की इस बार केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए दिल्ली की राह उतनी आसान नहीं होगी.

 

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