अंतरराष्ट्रीयराजनीति

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक-योल का महाभियोग, बोले – ‘मैं कभी हार नहीं मानूंगा’

नेशनल असेंबली ने भारी बहुमत से किया महाभियोग प्रस्ताव पारित

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक-योल ने शनिवार को देश की नेशनल असेंबली द्वारा उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद कहा कि वह “कभी हार नहीं मानेंगे।” राष्ट्रपति यून ने इस महाभियोग को “अस्थायी विराम” करार देते हुए जनता को आश्वस्त किया कि उनकी कोशिशें व्यर्थ नहीं जाएंगी।

राष्ट्रपति यून सुक-योल पर हाल ही में सैन्य शासन लागू करने का असफल प्रयास करने का आरोप लगाया गया था। एशिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में यह कदम न केवल असंवैधानिक माना गया बल्कि राजनीतिक हलचल का कारण भी बना। इसके बाद नेशनल असेंबली ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर मतदान किया।

शनिवार को हुए मतदान में नेशनल असेंबली ने भारी बहुमत से राष्ट्रपति यून के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित कर दिया। कुल 204 सांसदों ने उनके महाभियोग के पक्ष में वोट दिया, जबकि 85 सांसदों ने इसका विरोध किया। यह फैसला दक्षिण कोरियाई राजनीति में एक ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा जा रहा है।

महाभियोग के बाद राष्ट्रपति यून ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा,
“हालांकि मैं अभी कुछ समय के लिए ठहर गया हूं, लेकिन पिछले ढाई वर्षों से जनता के साथ जिस भविष्य की ओर मैं बढ़ रहा था, वह यात्रा रुकनी नहीं चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा कि वह “निराश” हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि राष्ट्रपति के तौर पर उनकी सारी कोशिशें बेकार चली गईं।

यून सुक-योल का महाभियोग दक्षिण कोरिया की राजनीति में गहराते अस्थिरता के दौर को दर्शाता है। हाल के महीनों में उनकी सरकार की नीतियों और सैन्य शासन के प्रस्ताव को लेकर विपक्ष और जनता के बीच असंतोष बढ़ता जा रहा था। राष्ट्रपति के महाभियोग ने देश की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

राष्ट्रपति यून सुक-योल ने स्पष्ट किया कि यह महाभियोग उनके लिए सिर्फ एक “अस्थायी विराम” है और वह जल्द ही फिर से अपनी राजनीतिक यात्रा को आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे। उनकी इस प्रतिक्रिया से उनके समर्थकों के बीच उम्मीद जगी है कि वह अपने राजनीतिक भविष्य को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश करेंगे।विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति के महाभियोग को लोकतंत्र की जीत करार दिया है। उनका आरोप है कि यून सुक-योल का सैन्य शासन लागू करने का प्रयास देश के संवैधानिक ढांचे के खिलाफ था और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

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