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पेरिस में अंतरराष्ट्रीय मंच पर बोले जयशंकर — ‘फ्रांस यूरोप में भारत का सबसे भरोसेमंद साझेदार’

रक्षा से लेकर समुद्री सहयोग तक साझा दृष्टिकोण और स्थायित्व पर दिया ज़ोर

 

पेरिस में एक अंतरराष्ट्रीय विचार मंच के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत और फ्रांस के बीच विश्वास पर आधारित रिश्ते को लेकर बेहद स्पष्ट और आत्मीय बातें कहीं। उन्होंने कहा कि फ्रांस, यूरोप में भारत का सबसे भरोसेमंद साझेदार है , एक ऐसा रिश्ता जो न तो अचानक बदलता है और न ही किसी राजनीतिक झटके से प्रभावित होता है। जयशंकर ने इसे एक ऐसा गठबंधन बताया जो स्थायित्व, संस्थागत मजबूती और राजनीतिक सहमति की नींव पर टिका हुआ है। यह साझेदारी केवल कूटनीतिक औपचारिकताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष, साइबर सुरक्षा, समुद्री हितों और तकनीकी सहयोग जैसे महत्वपूर्ण आयाम गहराई से जुड़े हुए हैं।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत-फ्रांस रिश्ते की गहराई को याद करते हुए उस दौर का ज़िक्र किया जब 1998 में भारत ने पोखरण–II परमाणु परीक्षण किया था। यह वह समय था जब वैश्विक स्तर पर कई देश भारत से दूरी बना रहे थे, लेकिन फ्रांस ने एक अलग रास्ता चुना। उसने न सिर्फ भारत पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया, बल्कि भारत की परिस्थितियों को समझते हुए संयम और समर्थन का रास्ता अपनाया। जयशंकर ने यह भी रेखांकित किया कि भारत ने अपने परमाणु सिद्धांत विशेषकर ‘प्रामाणिक न्यूनतम निरोध’ (credible minimum deterrence) जैसी अवधारणाएं फ्रांस जैसे अनुभवी देशों से सीखकर विकसित की हैं। आगे चलकर जब 2008 में भारत को न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) से विशेष छूट मिली, तब भी फ्रांस उन देशों में था जिन्होंने भारत की पक्षधरता खुलकर की। ये उदाहरण यह साबित करते हैं कि भारत और फ्रांस के बीच का रिश्ता केवल रणनीतिक या कूटनीतिक नहीं, बल्कि विश्वास और परिपक्व समझ पर आधारित है।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में फ्रांस की अहम भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि भारत फ्रांस को इंडो–पैसिफिक क्षेत्र में एक “स्थायी शक्ति” के रूप में देखता है, एक ऐसा देश जो सिर्फ बाहर से रुचि नहीं रखता, बल्कि इस क्षेत्र का हिस्सा बनकर उसकी स्थिरता और संतुलन में योगदान देता है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारत और फ्रांस का साझा सपना है एक ऐसा समुद्री क्षेत्र विकसित करना जो न केवल खुला और सुरक्षित हो, बल्कि स्वतंत्र और समावेशी भी हो, जहाँ छोटे देश भी अपनी नीतियाँ खुद तय कर सकें, बिना किसी दबाव या डर के।

जयशंकर ने यह भी बताया कि यह साझेदारी केवल समुद्री नीति तक सीमित नहीं है। दोनों देश आज रक्षा निर्माण से लेकर औद्योगिक तकनीक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ऊर्जा सुरक्षा और अंतरिक्ष विज्ञान जैसे आधुनिक और भविष्य–निर्माण वाले क्षेत्रों में कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं। यह सहयोग सिर्फ तकनीकी प्रगति नहीं, बल्कि उस परस्पर विश्वास का परिणाम है जो वर्षों की साझी सोच और व्यवहार से उपजा है।

जयशंकर के शब्दों में कहीं भी सिर्फ कूटनीतिक शिष्टाचार नहीं था, बल्कि एक ऐसी सच्चाई झलक रही थी, जो वक्त की कसौटी पर परखी जा चुकी है। भारत और फ्रांस का यह रिश्ता आज की अनिश्चितताओं से भरी दुनिया में एक स्थिरता देने वाली ताकत की तरह है, एक ऐसा संबंध जो रणनीतियों से आगे बढ़कर साझा मूल्यों, भरोसे और दूरदर्शिता की मिसाल बन चुका है।

इसके साथ ही, जयशंकर ने IMEC (India–Middle East–Europe Economic Corridor) जैसी अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं में फ्रांस की भूमिका को अहम बताया, जिससे न केवल भौगोलिक जुड़ाव बढ़ेगा, बल्कि भारत–यूरोप संबंधों को नई दिशा भी मिलेगी। उनके पूरे वक्तव्य में एक गहराई थी। यह सिर्फ एक राजनीतिक घोषणा नहीं थी, बल्कि दो देशों के बीच दशकों से बनते चले आ रहे विश्वास, साझेदारी और साझा दृष्टिकोण की सजीव अभिव्यक्ति थी।

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