
गंगा दशहरा के शुभ अवसर पर अयोध्या स्थित भव्य राम जन्मभूमि मंदिर में राम दरबार की भव्य प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन किया गया। इस ऐतिहासिक अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। विशेष बात यह रही कि यह आयोजन मुख्यमंत्री योगी के 53वें जन्मदिवस के दिन संपन्न हुआ, जिससे यह दिन और भी अधिक आध्यात्मिक और स्मरणीय बन गया।
यह राम मंदिर परिसर में दूसरी बड़ी प्राण प्रतिष्ठा थी, जिसमें भगवान श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी की प्रतिमाओं को विधिपूर्वक मंदिर की पहली मंजिल पर स्थापित किया गया। प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त ज्योतिषाचार्यों द्वारा निर्धारित समय — सुबह 11:25 बजे से 11:40 बजे तक — में शुरू हुआ। इस दौरान देशभर से आए प्रतिष्ठित आचार्यों और वैदिक विद्वानों ने वैदिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए पूजा-अर्चना और हवन संपन्न कराए।
राम दरबार के अलावा, राम मंदिर परिसर में स्थित सात अन्य मंदिरों में भी प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुई। इन मंदिरों में अन्य प्रमुख देवताओं की प्रतिमाओं की स्थापना की गई, जिससे सम्पूर्ण परिसर एक पूर्ण आध्यात्मिक केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित हो गया। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसने श्रद्धालुओं को एक साथ जोड़ने और अध्यात्मिक ऊर्जा का प्रसार करने का कार्य भी किया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति ने इस आयोजन को और अधिक गरिमा प्रदान की। उन्होंने इस अवसर पर कहा,
“यह राम राज्य की भावना का प्रतीक है। आज का यह आयोजन भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना का पुनरुत्थान है। राम मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यह भारत की एकता, संस्कृति और सनातन परंपरा का भी प्रतीक है।”
मुख्यमंत्री ने मंदिर निर्माण में लगे सभी कारीगरों, शिल्पकारों, विद्वानों और श्रद्धालुओं का आभार व्यक्त किया और राम मंदिर निर्माण परियोजना में हो रही तेज प्रगति पर संतोष जताया।
राम मंदिर का यह दूसरा प्राण प्रतिष्ठा समारोह अयोध्या को वैश्विक आध्यात्मिक मानचित्र पर एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित करता है। आने वाले समय में लाखों श्रद्धालु और पर्यटक यहां दर्शन हेतु आएंगे, जिससे न केवल धार्मिक गतिविधियां बढ़ेंगी बल्कि क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को भी नया जीवन मिलेगा।
गंगा दशहरा के दिन राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गरिमामयी उपस्थिति और समूचे वैदिक परंपरा के अनुसार संपन्न हुए अनुष्ठानों ने इस दिन को ऐतिहासिक बना दिया। यह आयोजन न केवल भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना, बल्कि यह संदेश भी दिया कि भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत आज भी जीवंत और सशक्त है।z