राष्ट्रीय

कश्मीर में माता खीर भवानी मंदिर के वार्षिक उत्सव को लेकर सुरक्षा चाक-चौबंद

कश्मीर के गांदरबल जिले में 14 जून से शुरू हो रहे माता खीर भवानी मंदिर के वार्षिकोत्सव के लिए इस बार व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की गई है।
माता खीर भवानी मंदिर महाराज्ञ भगवती को समर्पित है जो एक पवित्र झरने के ऊपर बना है। यह मंदिर देवी राग्यना देवी से जुड़ा है जिन्हें रागिन्या या खीर भवानी के रूप में भी पूजा जाता है और वे मां दुर्गा का अवतार हैं।
कश्मीरी पंडितों में माता खीर भवानी की पूजा का बहुत महत्व है। ज्यादातर लोग उन्हें अपनी संरक्षक देवी (कुलदेवी) के रूप में पूजते हैं। खीर शब्द का मतलब चावल की खीर से है जो वसंत ऋतु में देवी को प्रसन्न करने के लिए चढ़ाई जाती है और यही मंदिर का नाम बन गया।

रियासी जिले में तीर्थयात्रियों की बस पर आतंकवादी हमले को देखते हुए अधिकारियों ने खीर भवानी मंदिर तीर्थ उत्सव को लेकर किसी भी तरह का जोखिम न उठाने का फैसला किया है। देश के विभिन्न भागों से सैकड़ों कश्मीरी पंडित दो दिन पहले से ही मंदिर में पहुंचना शुरू कर देते हैं।

जम्मू से श्रद्धालुओं को उत्तरी कश्मीर के गांदरबल जिले के तुल्ला मुल्ला कस्बे में स्थित मंदिर तक लाने की व्यवस्था की गई है। श्रद्धालुओं को सुरक्षा काफिले में तुल्ला मुल्ला लाया जाएगा और त्योहार खत्म होने के बाद भी यही सुरक्षा व्यवस्था अपनाई जाएगी।

त्योहार से तीन दिन पहले मंदिर परिसर और उसके आसपास सुरक्षा बलों की तैनाती कर दी गई है। परिसर में प्रवेश करने वाले प्रत्येक भक्त/विजिटर की गहन जांच की जाती है और अंदर लाई जाने वाली सभी पूजा सामग्री को जांच के बाद ही अंदर जाने दिया जाता है।
सदियों से खीर भवानी मंदिर का त्यौहार कश्मीर के हिंदू-मुस्लिम भाईचारे का प्रतीक रहा है। मंदिर परिसर के आसपास रहने वाले स्थानीय मुसलमान आने वाले कश्मीरी पंडित भक्तों को मिट्टी के बर्तनों में दूध परोसते हैं।
मंदिर परिसर के अंदर एक कुंड मौजूद है। ऐसी मान्यता है कि यह भविष्य में आने वाली मुसीबत को देखकर अपना रंग बदल लेता है।
बता दें कि 1990 में जब स्थानीय पंडितों को आतंकवादियों ने घाटी से पलायन करने पर मजबूर किया था, तब इस झरने का रंग काला था। वहीं जब 1947 में कश्मीर पर आक्रमण हुआ तब भी इस पवित्र झरने का पानी काला ही था।

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