पाकिस्तान में ईद-उल-अज़हा से पहले अहमदिया मुस्लिमों पर प्रतिबंध, बलपूर्वक शपथपत्र पर हस्ताक्षर करवाए जा रहे
पंजाब और सिंध प्रांतों में कुरबानी पर ₹5 लाख जुर्माने की चेतावनी, गिरफ्तारी की धमकी भी

ईद-उल-अज़हा जैसे महत्वपूर्ण इस्लामिक त्योहार के मौके पर पाकिस्तान के अहमदिया मुस्लिम समुदाय के साथ एक बार फिर राज्य-प्रायोजित भेदभाव और उत्पीड़न की घटनाएं सामने आ रही हैं। पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों में प्रशासन ने अहमदिया समुदाय को चेतावनी दी है कि यदि उन्होंने ईद मनाने या कुरबानी करने की कोशिश की, तो उन पर 5 लाख पाकिस्तानी रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा और उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है।
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स और मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, प्रशासनिक अधिकारियों ने अहमदिया मुस्लिमों को बलपूर्वक शपथपत्रों पर हस्ताक्षर करवाए हैं, जिनमें यह लिखा गया है कि वे ईद-उल-अज़हा के किसी भी धार्मिक आयोजन में भाग नहीं लेंगे, न ही जानवर की कुरबानी देंगे। यदि उन्होंने ऐसा किया, तो कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
इस आदेश में यह भी कहा गया है कि यह नियम निजी स्थानों पर किए गए धार्मिक कृत्यों पर भी लागू होगा, यानी अहमदिया समुदाय अपने घरों में भी कुर्बानी नहीं कर सकते। यह प्रतिबंध धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का खुला उल्लंघन माना जा रहा है।
गौरतलब है कि अहमदिया समुदाय ने पाकिस्तान की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बावजूद, 1974 में पाकिस्तान की संसद ने उन्हें “गैर-मुस्लिम” घोषित कर दिया और तब से यह समुदाय लगातार धार्मिक भेदभाव और हिंसा का शिकार होता आया है।2004 से अब तक अहमदिया मस्जिदों को निशाना बनाया गया है, उनकी कब्रों को नष्ट किया गया है, और समुदाय के कई सदस्यों की हत्या की जा चुकी है।
अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय मानवाधिकार संगठनों ने पाकिस्तान सरकार की इस कार्रवाई की कड़ी निंदा की है। ह्यूमन राइट्स वॉच, एमनेस्टी इंटरनेशनल, और पाकिस्तान की ह्यूमन राइट्स कमीशन ने कहा है कि यह निर्णय पाकिस्तान के संविधान और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समझौतों दोनों का उल्लंघन करता है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपने बयान में कहा:
“किसी भी नागरिक को उसके धर्म का पालन करने से रोका जाना मौलिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है। पाकिस्तान को ऐसे भेदभावपूर्ण और अमानवीय आदेश तुरंत वापस लेने चाहिए।”
इन घटनाओं पर पाकिस्तान की मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों की चुप्पी भी चिंता का विषय बनी हुई है। धार्मिक कट्टरपंथ और वोटबैंक की राजनीति के चलते अहमदिया समुदाय पर अत्याचार के खिलाफ कोई स्पष्ट राजनीतिक विरोध सामने नहीं आ रहा है।
ईद जैसे पवित्र अवसर पर जब दुनिया भर के मुस्लिम भाईचारे और बलिदान का संदेश फैलाते हैं, वहीं पाकिस्तान के अहमदिया मुस्लिमों को अपनी धार्मिक आस्था छुपाने और दबाने पर मजबूर किया जा रहा है। यह घटनाएं केवल एक समुदाय के मानवाधिकारों का हनन नहीं हैं, बल्कि एक लोकतांत्रिक राष्ट्र की साख और उसके संविधान की भी गंभीर अवहेलना हैं।