
महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने अंततः पटौदी ट्रॉफी और भारत तथा इंग्लैंड के बीच टेस्ट श्रृंखला का नाम बदलकर एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी करने के इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड के निर्णय से संबंधित विवाद पर अपनी बात रखी है। तेंदुलकर को इस बात की खुशी होती कि उनके सम्मान में इस तरह के टूर्नामेंट का नाम रखा जाता, लेकिन पटौदी परिवार की विरासत तथा भारतीय क्रिकेट में उनके योगदान के प्रति गहरे सम्मान के कारण इस छोटे से मास्टर ने यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करने का संकल्प लिया है कि यह ट्रॉफी हमेशा बनी रहे।
हां, मैं चुप रहा। पहले मैं आपको पूरी बात बता दूं, ट्रॉफी को रिटायर करने का फैसला बीसीसीआई और ईसीबी का था। उन्होंने फैसला लेने के बाद ही मुझे इसकी जानकारी दी। जहां तक पटौदी परिवार का सवाल है, मैं भारतीय क्रिकेट में उनके योगदान से वाकिफ हूं। सीनियर पटौदी इंग्लैंड और भारत के लिए खेले, जबकि टाइगर पटौदी ने भारत की कप्तानी की, मैंने उन्हें खेलते नहीं देखा, क्योंकि मैं पैदा नहीं हुआ था। कहानियां हम सभी को प्रेरित करती हैं,” तेंदुलकर ने रेव स्पोर्ट्ज को बताया।
इसलिए मैं यह सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ था कि विरासत बरकरार रहे। जब मुझे पता चला.. तो मैंने परिवार को बुलाया और बातचीत की, उसके बाद, मैंने श्री जय शाह, बीसीसीआई और ईसीबी से बात की और उन्हें बताया कि विरासत को बनाए रखने के लिए कुछ किया जाना चाहिए। उन्होंने मेरी बात सुनी और उसके बाद हमारी दूसरी कॉल हुई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि पटौदी का नाम श्रृंखला के साथ जोड़ा जाएगा और विजेता कप्तान को पटौदी पदक से सम्मानित किया जाएगा। मैंने हमेशा अपने वरिष्ठ का सम्मान किया है और यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी शक्ति में सब कुछ किया कि पटौदी की विरासत इस श्रृंखला के साथ जुड़ी रहे।
भारत और इंग्लैंड की सीरीज का नाम बदलकर 2007 में पटाडी ट्रॉफी कर दिया गया, जब भारत ने इंग्लैंड में अपनी दूसरी टेस्ट सीरीज जीती थी। यह ट्रॉफी भारतीय टीम को दी गई थी, जिसकी कप्तानी तब राहुल द्रविड़ कर रहे थे, जबकि तेंदुलकर भी इसका हिस्सा थे, जब टीम ने इंग्लैंड को तीन टेस्ट मैचों की सीरीज में 1-0 से हराया था, जो 1932 में हुए पहले भारत बनाम इंग्लैंड टेस्ट मैच की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित किया गया था.