त्रेता युग में धर्मनगरी अयोध्या में, इक्षुवाशु बंश के चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के घर चैत्र माह की नवमी को भगवान् विष्णु के 7 वें अवतार के रूप में भगवान् राम का जन्म हुआ।
गोस्वामी तुलसीदास राम चरित्र मानस में राज जन्म का वर्णन कुछ यूँ किया है:
” नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ त्रेता अभिजित हरिप्रीता॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा”
अर्थात-पवित्र चैत्र का महीना था, नवमी तिथि थी। शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजित् मुहूर्त था। दोपहर का समय था। न बहुत सर्दी थी, न धूप (गरमी) थी। वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था।
गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार राम नाम के दोनों अक्षर “र” तथा “म” ताली के आवाज की तरह हैं जो संदेह की पंछियों को हमसे दूर ले जाता है। ये हमें देवत्व शक्ति के प्रति विश्वास से ओत – प्रोत करते हैं……. सम्पूर्ण मानव समाज ने भगवान राम को आदर्श के रूप में स्वीकार किया हैं, राम के भक्त राम को अलग अलग रूपों में स्वीकार करते हैं।
राम सबके है…. राम सभी भौगोलिक बंधनो से परे हैं, जहाँ एक और पूर्व में कृतिवास रामायण है तो वही महाराष्ट्र में भावार्थ रामायण का प्रभाव देखने को मिलता है……. मध्य और उत्तर भारत में जहाँ तुलसीदास जी की राम चरित्र मानस सर्वोच्च ग्रन्थ है तो वही सुदूर दक्षिण में महर्षि कम्बन द्वारा रचित काम्ब रामायण अत्यंत भक्तिपूर्ण ग्रन्थ है। स्वम गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम चरित्र मानस में राम ग्रंथो का विस्तार से वर्णन किया है…… गोस्वामी जी लिखते हैं-
” नाना भांति राम अवतारा
रामायण सत कोटि अपरा “
राम करुणा, त्याग, तपस्या और कर्तव्यनिष्ठा की प्रतिमूर्ति है। राम हो जाना सहज नहीं है….राम ऐसा पथ है जिस पर सदा राम ही चले। धर्मनगरी अयोध्या के कण कण में राम बसते हैं दशरथ महल हो या फिर उनके सबसे प्रिय भक्त हनुमान का स्थान हनुमान गाढ़ी, सरयू किनारे बने घाट हों या फिर राम की पैड़ी राम हर जगह विराजमान है।
अयोध्या से वनगमन को निकले राम १४ वर्ष बाद जब पुनः राजधानी लौटे तो मर्यादापुरुषोत्तम राम बनकर आये…….14 वर्षों के दौरान राम जहाँ-जहाँ गए राम ने सबको अपना बना लिया. वैसे भी कहा ही गया है ” सियाराम मय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरी जुग पानी”।
मनुष्य के जीवन में आने वाले सभी संबंधों को पूर्ण और उत्तम तरीके से निभाने की शिक्षा देने वाला प्रभु राम के सामान दूसरा कोई चरित्र नहीं है….. पिता की आज्ञा पूरी करने के लिए हाथ में आया हुआ राजपाट जो मुस्कुराते हुए छोड़ दे वो राम हैं ……..वन में रहने वाले निषादराज को मित्र कहकर गले लगाले वो राम है…….. सबरी के झूठे बेरों को भी जो बड़े आनंद और स्वाद से खाये वो राम हैं……. छोटे भाई की पत्नी पर बुरी नजर रहने वाले अधर्मी को जो दंड दे वो राम हैं…….और स्वर्णमयी लंका जितने के बाद भी जो राजपाट उसी लंकेश के अनुज को सौंप दें वो राम हैं।
राम सर्वत्र हैं…… भाई द्वारा घर से निकले गए सुग्रीव की एक मात्र उम्मीद भी राम है तो समुन्द्र में पूल बनाने के लिए फेंके गए पत्थरों का एकमात्र सहारा भी राम नाम है……. राम विनयशील हैं इसलिए जानकी स्वम्बर में शिव धनुष के टूट जाने से क्रोधित परशुराम के आगे हाथ जोड़े खड़े राम अति विनम्र होकर कहते हैं-
” नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा”
अर्थात- हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई एक दास ही होगा।
राम परिपूर्ण हैं आदर्श हैं, राम ने ईश्वर होकर मानव रूप रचकर मानव जाती को मानवता का पाठ पढ़ाया है। उपनिषदों में “राम ” नाम ॐ अथवा ब्रह्म है।
“र ” का अर्थ तत (परमात्मा) तथा “म ” का अर्थ त्वम् (जीवात्मा) है। …….. भारतीय जीवन में राम उसी प्रकार विराजमान है जिस प्रकार दुग्ध में धवलता
भगवान् राम मर्यादा के परम आदर्श के रूप में प्रतिष्ठित हैं। श्रीराम सदैव कर्त्वनिष्ठा के प्रति आस्थावान रहे हैं। राम पुरुषों में उत्तम-पुरुषोत्तम हैं और मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में सर्वत्र व्याप्त हैं।
कहा गया है-
एक राम दशरथ का बेटा एक राम घर घर में लेटा
एक राम का सकल पसारा एक राम है सबसे न्यारा.