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राष्ट्रीय राजनीती में क्षेत्रीय दलों का दबदबा, किंगमेकर भूमिका में नितीश-नायडू और ममता-अखिलेश

लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर तमाम कयासों और अनुमानों पर विराम लग गया है। जनता जनार्दन के फैसले से स्पष्ट है कि किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। चुनाव पूर्व गठबंधन की बात करें  तो संख्या के लिहाज से NDA गठबंधन पूर्ण बहुमत के जादुई आकड़ें के पार है तो वही I.N.D.I.A गठबंधन भी ज्यादा पीछे नहीं है। बीजेपी भारी नुकसान के बावजूद 240 सीटों के साथ सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बनी हुई है तो वही दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस 99 सीटों के साथ काफी पीछे है। कांग्रेस बस इसलिए खुश है की लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी को पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने से रोकने में वह कामयाब रही। अब फिर एक बार देश में 10 वर्षों के बाद गठबंधन युग की वापसी हो गयी है, जिस गठबंधन की सरकारों को देश 10 साल पहले नकार चूका था उसकी फिर से वापसी हुई है.

दरसल गठबंधन सरकारों की अपनी कुछ मजबूरियाँ भी होती हैं, कई बार गठबंधन में शामिल दल की अनुचित मांगों पर भी विचार करना होता है और कई बार अनुचित कृत्यों से नजर भी फेर ली जाती है और यह सब गठबंधन धर्म की दुहाई देकर आसानी से हो जाता है। इसके साथ ही मुख्य दल को अपने एजेंडे को प्रभावी रूप से लागू करने में भी अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। पॉलिसी पैरालिसिस गठबंधन सरकारों की ही देन है। NDA गठबंधन की नई संभावित सरकार में बीजेपी यूनिफार्म सिविल कोड और जनसँख्या नियंत्रण सहित अनेक मुद्दों पर क्या रणनीति अपनाती है इस पर आने वाले समय में सबकी निगाहें बनी रहेगी.

पिछले 10 सालों में कांग्रेस के लगातार कमजोर प्रदर्शन और इस चुनाव में बीजेपी की पूर्ण बहुमत से चूक जाने से क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ गया है। उत्तर प्रदेश में शानदार प्रदर्शन से  जहाँ अखिलेश यादव बेहद मजबूत स्तिथि में हैं तो वही ममता बनर्जी ने बंगाल जीतकर अपने राजनैतिक हैसियत को और बड़ा किया है। NDA गठबंधन के सरकार ना बना पाने की स्तिथि में यदि I.N.D.I.A गठबंधन यदि अपनी दावेदारी पेश करता है तो यह दोनों नेता किंगमेकर की भूमिका में दिखाई देंगे और अच्छी बार्गेनिंग पोजीशन में भी होंगे। वही बीजेपी जनता दल यूनाइटेड और तेलगु देशम पार्टी के बिना सरकार नहीं बना सकती इसलिए नितीश कुमार और चंद्र बाबू नायडू दोनों ही अच्छी बार्गेनिंग पोजीशन में है और बीजेपी पर दबाव डालकर अपनी पार्टी के लिए मनचाहे पोर्टफोलियो की माँग कर सकती है.

तमिनाडु में DMK और बिहार में चिराग पासवान भी इस बार अच्छी पोजीशन में है और समर्थन के बदले मनचाहे मंत्रालय के लिए सरकार पर दबाव दाल सकती है। यानि किंग चाहे कोई भी बने सत्ता की चाबी अब अगले 5 साल के लिए क्षेत्रीय दलों के हाथ में रहेगी और इस प्रकार इन चुनावों में 10 साल बाद गठबंधन सरकार की वापसी हुई है। किंग चाहे कोई भी बने पर किंगमेकर की भूमिका में क्षेत्रीय पार्टयों के नेता ही रहेंगे. 

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