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2030 तक 240 अरब डॉलर पर पहुंच सकता है देश का इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट विनिर्माण

सरकार की ओर से घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को बढ़ावा दिए जाने के कारण देश के इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट और सब-असेंबली का बाजार 2030 तक 240 अरब डॉलर के आंकड़े को छू सकता है। इससे 2026 तक करीब 2.8 लाख नई नौकरियां पैदा होंगी और 500 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन के लक्ष्य का मार्ग प्रशस्त होगा।

भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की रविवार को जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि प्राथमिक इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट और सब-असेंबली (पीसीबीए सहित) की मांग 2030 तक 30 प्रतिशत की औसत वार्षिक दर से बढ़ते हुए 139 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है।

पिछले वर्ष इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट और सब-असेंबली की मांग 45.5 अरब डॉलर पर थी जिसने करीब 102 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के विनिर्माण में मदद की।

रिपोर्ट में बताया गया है कि बैटरी (लिथियम आयन), कैमरा मॉड्यूल, मैकेनिकल, डिस्प्ले और पीसीबी के लिए कंपोनेंट को सरकार ने उच्च प्राथमिकता में रखा है। वर्ष 2022 में देश की कुल इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट की मांग में 43 प्रतिशत का योगदान इन्हीं उत्पादों का था। वर्ष 2030 तक इस मांग के 51.6 अरब डॉलर पर पहुंचने की उम्मीद है।

रिपोर्ट में कहा गया कि पीसीबीए में भारत के लिए काफी संभावनाएं हैं क्योंकि इसकी मांग की ज्यादातर पूर्ति आयात से की जाती है। यह सेगमेंट 30 प्रतिशत की दर से बढ़ सकता है। इसकी मांग 2030 में 87.46 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है।

रिपोर्ट में कुछ विशेष इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट के लिए वित्तीय सहायता देने की भी मांग की गई है। छह से आठ साल तक वित्तीय सहायता मिलने से इन उत्पादों की विनिर्माण क्षमता बढ़ाने के लिए उत्पादकों के पास पर्याप्त समय होगा।

इसके अतिरिक्त रिपोर्ट में प्रमोशन ऑफ मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट एंड सेमीकंडक्टर 2.0 स्कीम शुरू करने की मांग की गई है। इसमें कहा गया है कि दूसरे चरण में 25 से 40 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाए ताकि संभावित निवेशकों को आसानी हो।

सीआईआई ने कहा है कि भारतीय उत्पादों की निर्यात मांग पैदा करने से दोतरफा फायदा होगा। पहला, निर्यात की मात्रा बढ़ जाएगी। दूसरी तरफ घरेलू कंपोनेंट और सब-असेंबली के विनिर्माण के लिए भी यह मददगार होगा।

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