कर्नाटक श्रम विभाग ने ज़ोमैटो, स्विगी, ओला जैसी एग्रीगेटर सेवाओं पर लगाया 1-2% सेस, गिग वर्कर्स की भलाई के लिए जुटाई जाएगी धनराशि
कर्नाटक श्रम विभाग ने राज्य में एग्रीगेटर प्लेटफ़ॉर्म जैसे ज़ोमैटो, स्विगी, ओला, डंज़ो, ज़ेप्टो और अन्य सेवाओं पर 1-2% का सेस लगाने का फैसला किया है। यह सेस हर लेन-देन पर लागू होगा, और इससे जुटाई गई धनराशि का उपयोग गिग और प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स के कल्याण के लिए बने विशेष फंड में किया जाएगा।
कर्नाटक सरकार का यह कदम गिग इकॉनमी में काम करने वाले लाखों कर्मचारियों की भलाई के लिए एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है। इस सेस के जरिए गिग वर्कर्स, जैसे कि फूड डिलीवरी करने वाले, कैब ड्राइवर्स, और अन्य अस्थायी कामगारों को विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा। इसमें स्वास्थ्य बीमा, दुर्घटना बीमा, सामाजिक सुरक्षा, और अन्य लाभ शामिल होंगे, जो इन अस्थायी कामगारों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए डिजाइन किए गए हैं।
श्रम विभाग के अधिकारियों ने बताया कि इस सेस से राज्य के लाखों गिग वर्कर्स को सीधा लाभ मिलेगा, जो अपने काम के माध्यम से बिना किसी सुरक्षा के जीवन यापन कर रहे हैं। इस नए सेस का मुख्य उद्देश्य उनकी सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करना है।
यह सेस उन सभी एग्रीगेटर कंपनियों पर लागू होगा जो राज्य में विभिन्न सेवाएं प्रदान करती हैं। इनमें प्रमुख फूड डिलीवरी सेवाएं ज़ोमैटो और स्विगी, कैब सेवाएं ओला, राइड शेयरिंग और अन्य लॉजिस्टिक्स सेवाएं शामिल हैं। हर ट्रांजैक्शन पर 1-2% का अतिरिक्त शुल्क वसूला जाएगा, जिसे कंपनी द्वारा ग्राहकों से लिया जा सकता है या कंपनी स्वयं वहन कर सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से इन सेवाओं की कीमतों में मामूली वृद्धि हो सकती है, लेकिन इसका असर लंबे समय में गिग वर्कर्स के कल्याण पर सकारात्मक रूप से दिखेगा। गिग वर्कर्स की स्थिति अक्सर अस्थिर और असुरक्षित होती है, क्योंकि उनके पास कोई स्थाई नौकरी या सरकार द्वारा प्रदत्त सुरक्षा नहीं होती। इस नई पहल के तहत गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का हिस्सा बनाया जाएगा, जिससे उन्हें दुर्घटना, बीमारी, और आपातकालीन परिस्थितियों में सहायता मिल सकेगी।
श्रम विभाग के एक अधिकारी ने बताया,“यह सेस गिग वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लागू किया गया है। इसके जरिए हम इन कामगारों के जीवन को बेहतर और सुरक्षित बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।”एग्रीगेटर कंपनियों ने इस फैसले पर अभी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन कई उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि यह उनके ऑपरेशन के लागत ढांचे पर प्रभाव डाल सकता है। हालांकि, लंबे समय में इस सेस से गिग वर्कर्स के जीवन में सुधार की उम्मीद है, जिससे इन सेवाओं की गुणवत्ता और स्थायित्व भी बेहतर हो सकता है।
कर्नाटक का यह निर्णय पूरे देश में एक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि गिग वर्कर्स की संख्या तेजी से बढ़ रही है और उनकी सामाजिक सुरक्षा की चिंता भी उतनी ही बढ़ रही है। राज्य सरकार की यह पहल गिग वर्कर्स की स्थिति को सुधारने और उन्हें एक सुरक्षित भविष्य देने के लिए एक बड़ा कदम है।