कॉमर्स के बढ़ते प्रभाव से संकट में किराना व्यापार: पिछले साल में बंद हुए दो लाख से अधिक स्टोर्स
भारत में पारंपरिक किराना स्टोर्स का व्यापार संकट के दौर से गुजर रहा है। बीते वर्ष में आर्थिक मंदी और क्विक कॉमर्स के बढ़ते प्रभाव के चलते करीब दो लाख से अधिक किराना स्टोर्स को अपने दरवाजे बंद करने पड़े हैं। एक समय पर भारतीय खुदरा क्षेत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा माने जाने वाले ये स्टोर्स अब आर्थिक दबाव और ऑनलाइन सुविधाओं के कारण संकट में आ गए हैं।क्विक कॉमर्स, जैसे कि 10 से 30 मिनट में डिलीवरी देने वाले ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, ग्राहकों के लिए सुविधा और समय की बचत के रूप में एक आकर्षक विकल्प बन चुके हैं। बिगबास्केट, ब्लिंकिट, स्विगी इंस्टामार्ट, और जोमैटो जैसी कंपनियों ने तेजी से देश के छोटे-बड़े शहरों में अपना जाल फैलाया है। इससे ग्राहकों के बीच किराना स्टोर्स की ओर जाने की प्रवृत्ति में कमी आई है, जिससे पारंपरिक किराना दुकानदारों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है।
पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक मंदी और महंगाई के कारण किराना स्टोर्स के लिए स्थिति और कठिन हो गई है। आर्थिक अस्थिरता के चलते आम लोगों की क्रय शक्ति में कमी आई है, जिससे दैनिक उपभोग की वस्तुओं की खरीदारी पर असर पड़ा है। उपभोक्ताओं का रुझान सस्ते विकल्पों की ओर हो गया है, जो कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स अक्सर अधिक रियायत और कैशबैक ऑफर्स के माध्यम से प्रदान कर रहे हैं।
किराना स्टोर्स के बंद होने से छोटे और मझोले व्यापारियों को खासा नुकसान हुआ है। कई छोटे दुकानदारों के पास डिजिटल तकनीक या लॉजिस्टिक्स की सुविधा नहीं होती है, जिसके कारण वे ऑनलाइन प्लेटफार्म्स से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहे हैं। इसके अलावा, किराना स्टोर्स की आमदनी का एक बड़ा हिस्सा क्रेडिट पर होता है, जिससे कई बार वित्तीय संकट में फंस जाते हैं, और अंततः उन्हें अपनी दुकान बंद करने का निर्णय लेना पड़ता है।
पारंपरिक किराना व्यापारियों को क्विक कॉमर्स से मुकाबले के लिए नई रणनीतियां अपनाने की जरूरत है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि ये दुकानदार डिजिटल भुगतान और ऑनलाइन डिलीवरी की सुविधा प्रदान करने लगें, तो वे इस प्रतिस्पर्धा का सामना कर सकते हैं। इसके साथ ही सरकार से भी छोटे व्यवसायों को राहत पैकेज और वित्तीय सहायता की उम्मीदें हैं, जिससे वे इस कठिन समय से बाहर निकल सकें।किराना स्टोर्स का बंद होना न केवल व्यापारियों के लिए बल्कि ग्राहकों के लिए भी असुविधाजनक साबित हो सकता है। इन स्टोर्स का न केवल आर्थिक महत्व है, बल्कि सामाजिक महत्व भी है, क्योंकि ये दुकानदार अपने ग्राहकों को निजी सेवाएं और ऋण की सुविधा भी प्रदान करते हैं।