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विजय ने जाति-आधारित जनगणना में देरी पर जताई चिंता, सामाजिक न्याय की मांग पर जोर

सामाजिक न्याय की बढ़ती मांग का संकेत

अभिनेता-राजनीतिज्ञ विजय ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X पर एक पोस्ट में यह चिंता व्यक्त की है कि भारत में जाति-आधारित जनगणना करने में लगातार हो रही देरी ने देश के हाशिए पर मौजूद समुदायों की उपेक्षा को और बढ़ा दिया है। विजय ने कहा कि जाति-आधारित सामाजिक न्याय की मांग लगातार तेज़ हो रही है, लेकिन सरकारी स्तर पर इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।

विजय ने अपने पोस्ट में कहा कि जाति जनगणना न केवल सांख्यिकी के लिहाज से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे सामाजिक न्याय की प्राप्ति में भी मदद मिलेगी। उनके अनुसार, marginalized (हाशिए पर) समुदायों के हित में यह एक आवश्यक कदम है ताकि सरकार उन समूहों की वास्तविक स्थिति और उनकी जरूरतों को समझकर उचित नीति बना सके।

विजय ने यह भी कहा कि देश में जाति-आधारित सामाजिक न्याय की मांग तेज़ी से बढ़ रही है। अनेक सामाजिक कार्यकर्ता, विशेषज्ञ और नागरिक समूह इस मुद्दे पर सरकार से कई बार आग्रह कर चुके हैं, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। उनकी राय में, अगर यह जनगणना समय रहते कर ली गई, तो इससे न केवल अल्पसंख्यकों को, बल्कि समाज के उन वर्गों को भी बेहतर सुविधाएँ और अवसर मिल सकेंगे जो पारंपरिक रूप से हाशिए पर रहे हैं।

अपने पोस्ट में विजय ने सरकारी उपेक्षा पर भी तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि बार-बार उठाई गई जाति जनगणना की मांगों के बावजूद, सरकारी एजेंसियाँ इस मुद्दे को नजरअंदाज करती आ रही हैं। उनके अनुसार, यह उपेक्षा न केवल सामाजिक विषमता को बढ़ावा देगी, बल्कि इससे सामाजिक तनाव भी उत्पन्न हो सकता है।

विजय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, “हमें एक ऐसे समाज की आवश्यकता है जहाँ हर वर्ग को बराबरी का हक मिले। जाति जनगणना से हमें उन समुदायों की वास्तविक स्थिति का पता चलेगा, जिनकी आवाज दबा दी गई है।” उन्होंने यह भी जोर देकर कहा कि यदि सरकार समय रहते इस मुद्दे पर ध्यान नहीं देती, तो सामाजिक न्याय की मांग और भी प्रबल हो जाएगी।

विजय की यह टिप्पणी एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे को उजागर करती है, जिसने देश के विभिन्न हिस्सों में चर्चा का विषय बना हुआ है। उनकी बातों से यह स्पष्ट होता है कि जाति-आधारित जनगणना न केवल सांख्यिकी के लिहाज से, बल्कि सामाजिक न्याय के लिहाज से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। सरकार से अपेक्षा की जा रही है कि वह इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करेगी और जल्द ही आवश्यक कदम उठाएगी।इस संदर्भ में, विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर समय रहते यह जनगणना कर ली गई, तो इससे अल्पसंख्यकों तथा हाशिए पर पड़े समुदायों के हितों की बेहतर सुरक्षा हो सकेगी और समाज में समावेशिता को बढ़ावा मिलेगा।

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