
कल पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से ही शायद गुस्से में लोग सोशल मीडिया के जरिए इस्लामिक आतंकवाद को लेकर मुखर हैं तो वहीं कुछ अभी भी इस अवसर पर अपना वोट बैंक साधने में लगे हैं…. मेरी निजी राय है कि इस घटना के लिए इस्लामिक कट्टरपंथी से ज्यादा जिम्मेदार कोई और है। सवाल मुसलमानों से नहीं बल्कि उनसे पूछा जाना चाहिए जो इन आतंकवादियों का भरण-पोषण करते हैं.
जिम्मेदार उनको ठहराया जाना चाहिए जो दिन भर टीवी स्टूडियो में बैठकर आतंकवादियों की परोक्ष रूप से पैरवी करते हैं….जिम्मेदार उनको ठहराया जाना चाहिए जो आतंकवादियों को भटका हुआ नौजवान बताते है और उनके लिए कोर्ट में खड़े हो जाते हैं…. जिम्मेदारी उनकी बनती है जो यूट्यूब पर इनके लिए हमदर्दी रखते हुए मसाला परोसते हैं और जिम्मेदार उनको ठहराया जाना चाहिए जो विश्वविद्यालय परिसरों में आतंकवादियों के समर्थन में जुलूस निकालते हुए नारे लगाते हैं… सवाल उस तमाम मानवाधिकारों की वकालत करने और विदेशी चंदे से चलने वाले एनजीओ से भी पूछा जाना चाहिए जिनको आतंकवादी में कभी हेड मास्टर दिख जाता है तो कभी भटका हुआ नौजवान। सवाल उस सिस्टम के मुग़ल महारथियों से भी पूछा जना चाहिए जिनको आतंक के खिलाफ उठाया गया कोई भी कदम मुसलमान विरोधी नजर आता है.
आज सवाल पूछिए अपने उस नेता से जिसे आपने अपनी जाती का होने मात्र से अपना नेता मान लिया पर वो आज इस आतंकी घटना पर आपके दर्द में शरीक नहीं है… सवाल उस पूरी गैंग से पूछिए जिसे दुनिया के मानचित्र पर फिलिस्तीन का कुछ अता-पता ना होने के बावजूद फिलिस्तीनियों के साथ पूरी ताकत से खड़ा था पर आज इस हमले पर किंतु-परन्तु में उलझा रहा है.
याद रहे मुसलमान को घेरकर कुछ हासिल नहीं होगा बल्कि इससे स्तिथि और बिगड़ जाएगी और गिद्ध इसी टाक में बैठे हैं … मुसलमान टीवी/यूट्यूब पर एंकरिंग कर आतंकवादियों के पक्ष में माहौल नहीं बनाता और ना ही कोर्ट में उनकी पैरवी करता है… सवाल मुसलमान पर नहीं उन लोगों पर उठाओ जिन्हें लगता है कि आतंकवादियों के प्रति हमदर्दी दिखाकर वो किसी समुदाय का वोट हासिल कर सकते हैं। सवाल उस विचार पर उठाओ जिसने धर्म का नाम लेकर इस्लामिक कट्टरपथ को जायज ठहराने का काम किया है.
याद रहे कि अभी सुरक्षाबलों के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर पुलिस के कई जवान भी इस वक्त आतंकवादियों की तलाश में शामिल हैं जो धर्म से मुसलमान हैं। मुसलमान पर सवाल उठाना जम्मू कश्मीर पुलिस के साथ ही उसके जाबांज अफसर अयुब पंडित की शहादत का भी अपमान होगा, ऐसा करने से लेफ्टिनेंट उमर फ़ैयाज़ की शहादत भी बेकार जाएगी और ब्रिगेडियर उस्मान और बीर अब्दुल हमीद की कुर्बानी के साथ ही यह आज़ादी की लड़ाई में अशफाकउल्लाह खान के योगदान का भी अपमान होगा.
इसलिए सवाल मुसलमानों से नहीं उस सिस्टम #Ecosystem से बनता है जो ऐसी आतंकी सोच का भरण-पोषण करती है… जो हिन्दुओं के साथ होने वाले हर अत्याचार पर अगर-मगर से आगे नहीं बढ़ पाती… ये वही सोच और विचारधारा है जो 90 के दशक में कश्मीर से पंडितों का पलायन कराती है तो वही आज बंगाल, असम और दिल्ली के कुछ इलाकों से हिन्दुओं के पलायन की पटकथा लिखती है.