
केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए आगामी जनगणना में जातिगत गणना (Caste Census) को शामिल करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स (CCPA) की बुधवार को हुई बैठक में लिया गया। केंद्र सरकार के इस फैसले को समानता आधारित और लक्षित नीतियों की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जानकारी देते हुए कहा,
“प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में CCPA ने यह फैसला लिया है कि आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़े भी एकत्र किए जाएंगे। यह सरकार की समाज के प्रति प्रतिबद्धता और समावेशी नीतियों की सोच को दर्शाता है।”
जातिगत जनगणना के फैसले का राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के सहयोगी दलों ने स्वागत किया है। उनका कहना है कि यह कदम समाज के विभिन्न वर्गों की वास्तविक सामाजिक-आर्थिक स्थिति को जानने और उनके अनुसार योजनाएं तैयार करने में सहायक होगा।
एक सहयोगी दल के वरिष्ठ नेता ने कहा,
“यह फैसला स्वागत योग्य है। इससे सरकार को यह समझने में मदद मिलेगी कि कौन से वर्ग किन परिस्थितियों में जीवन बिता रहे हैं और उन्हें किस तरह की सरकारी मदद की ज़रूरत है।”
जातिगत जनगणना को लेकर वर्षों से मांग उठती रही है। यह माना जाता रहा है कि इससे नीतियों के तर्कसंगत और समान वितरण में मदद मिलेगी। हालांकि, अब तक केंद्र सरकार ने इसे जनगणना का हिस्सा नहीं बनाया था। अंतिम बार 1931 में ब्रिटिश सरकार के समय जातिगत गणना करवाई गई थी।
कई राज्य सरकारें जैसे कि बिहार पहले ही अपने स्तर पर जातिगत सर्वेक्षण कर चुकी हैं। अब केंद्र सरकार द्वारा इसे राष्ट्रीय जनगणना में शामिल करना एक नीतिगत बदलाव के रूप में देखा जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह निर्णय समाज के वंचित वर्गों तक सरकारी योजनाओं के लाभ को पहुंचाने में मददगार साबित हो सकता है। साथ ही, यह आगामी चुनावों के परिप्रेक्ष्य में भी एक रणनीतिक फैसला माना जा रहा है।सरकार ने अभी इस बात की स्पष्ट जानकारी नहीं दी है कि जातिगत आंकड़े कब और कैसे प्रकाशित किए जाएंगे, लेकिन माना जा रहा है कि इस प्रक्रिया में प्राइवेसी, डेटा सुरक्षा और पारदर्शिता का विशेष ध्यान रखा जाएगा।