पोप लियो XIV ने संभाला पदभार, पहली बार कोई अमेरिकी बना कैथोलिक धर्मगुरु
ऐतिहासिक विरासत और नई उम्मीदें

पोप लियो XIV ने रविवार को वेटिकन में आयोजित अपने उद्घाटन मास के दौरान आधिकारिक रूप से कैथोलिक चर्च के 1.4 अरब अनुयायियों के आध्यात्मिक नेता के रूप में पदभार ग्रहण कर लिया। इस दौरान उन्हें पारंपरिक ‘पैलियम’ और ‘फिशरमैन रिंग’ पहनाई गई, जो पोप के अधिकार और जिम्मेदारी का प्रतीक मानी जाती हैं।
पोप के उद्घाटन मास में शामिल होने के लिए दसियों हजार लोग सेंट पीटर्स स्क्वायर में एकत्र हुए, जो कि अप्रैल में पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार के बाद सबसे बड़ा जमावड़ा था। इस ऐतिहासिक अवसर पर अमेरिकी और पेरूवियन झंडे हवा में लहराते नजर आए, क्योंकि पोप लियो XIV पहले ऐसे अमेरिकी पोप बने हैं, जिनके पास पेरू की नागरिकता भी है।
69 वर्षीय पोप लियो XIV का जन्म अमेरिका के शिकागो में हुआ था। वे कई वर्षों तक पेरू में मिशनरी के रूप में सेवा देते रहे, जहां उन्होंने गरीब और वंचित समुदायों के बीच काम किया। उनका यह दोहरा सांस्कृतिक और सामाजिक अनुभव अब वेटिकन की नीतियों और दृष्टिकोण को नई दिशा दे सकता है।
अपने पहले संबोधन में पोप लियो XIV ने सभी धर्मों के बीच शांति, करुणा और संवाद को प्राथमिकता देने की बात कही। उन्होंने कहा,
“मैं उन सभी लोगों के लिए प्रार्थना करता हूं जो न्याय, समानता और शांति की तलाश में हैं। हमारा धर्म केवल अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सेवा, प्रेम और एकता का मार्ग है।”
पोप लियो XIV का चयन ऐसे समय हुआ है जब दुनिया सामाजिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझ रही है। माना जा रहा है कि उनका अमेरिकी नेतृत्व और लैटिन अमेरिकी अनुभव वेटिकन की वैश्विक दृष्टिकोण में संतुलन ला सकता है।धार्मिक विश्लेषकों का मानना है कि यह पोप चर्च के भीतर सुधारवादी दृष्टिकोण, युवाओं की भागीदारी, और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को अधिक प्राथमिकता देंगे।
पोप लियो XIV का कार्यकाल कैथोलिक चर्च के लिए एक नए युग की शुरुआत मानी जा रही है, जिसमें विविधता, समावेशिता और वैश्विक एकता को प्रमुख स्थान मिल सकता है। दुनिया की निगाहें अब इस नए पोप पर टिकी हैं, जो परंपरा और परिवर्तन के बीच एक नई राह बनाने जा रहे हैं।