
मध्य प्रदेश के खंडवा में आज एक ऐसा पल देखने को मिला, जो विकास और संवेदनशीलता – दोनों का सुंदर मेल था। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जब मंच से जल संरक्षण से जुड़ी 1518 करोड़ रुपये की योजनाओं का लोकार्पण किया, तो यह सिर्फ योजनाओं की शुरुआत नहीं थी, बल्कि एक नई सोच, एक नई ज़िम्मेदारी की शुरुआत थी। “जल गंगा संवर्धन अभियान” तीन महीने पहले शुरू हुआ था। तब इसे एक सरकारी अभियान माना गया था, लेकिन आज यह लोगों की साझी कोशिश, गांव-गांव की भागीदारी और हर वर्ग की आवाज़ बन चुका है। इस दौरान राज्य भर में 84,000 से ज्यादा फार्म तालाब, 1,283 अमृत सरोवर, 1 लाख से ज्यादा रिचार्ज पिट और कई बड़ी सिंचाई योजनाएं पूरी की गईं। ये सिर्फ निर्माण कार्य नहीं, बल्कि उन उम्मीदों का हिस्सा हैं, जो हर किसान, हर ग्रामीण परिवार अपने खेत और अपने बच्चों के भविष्य के लिए पालता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअल माध्यम से इस अभियान को संबोधित करते हुए इसे “देश की ज़रूरत” बताया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि जल संरक्षण अब सिर्फ सरकारी ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज की साझी ज़िम्मेदारी है। इस अभियान की एक खास बात यह रही कि इसमें परंपरा और तकनीक दोनों का संतुलन दिखा। एक ओर जहां गांव के बुजुर्गों से लेकर युवा ‘जलदूत’ बनकर आगे आए, वहीं दूसरी ओर काम की निगरानी के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हुआ, जिससे पारदर्शिता और ज़मीनी असर दोनों बेहतर रहे।
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने मंच से कहा, “पानी बचाना केवल एक काम नहीं, यह हमारी संस्कृति होनी चाहिए।” उन्होंने ‘एक पेड़ माँ के नाम’ जैसी भावुक अपीलों के ज़रिए लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ने की कोशिश की – और यह कोशिश रंग भी ला रही है। इस अभियान ने यह साबित कर दिया कि अगर सरकार, समाज और तकनीक एक दिशा में साथ चलें, तो बदलाव सिर्फ संभव नहीं, बल्कि स्थायी भी हो सकता है।