देशभर में दुर्गा पूजा के पावन अवसर पर मां दुर्गा की विदाई के साथ ही भव्य उत्सव की समाप्ति हो गई। इस मौके पर महिलाओं ने विशेष रूप से सिंदूर खेला और धुनुची नृत्य कर मां दुर्गा को विदा किया। बंगाल समेत पूरे देश में यह दृश्य देखने को मिला, जहां भक्तों ने मां दुर्गा से अगले साल फिर से आने की प्रार्थना की।
दुर्गा पूजा के अंतिम दिन, जिसे विजयादशमी या दशहरा कहा जाता है, पर बंगाल में महिलाओं द्वारा सिंदूर खेला की परंपरा निभाई जाती है। इस परंपरा में विवाहित महिलाएं मां दुर्गा की प्रतिमा को सिंदूर चढ़ाती हैं और एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर सौभाग्य की कामना करती हैं। सिंदूर खेला एक तरह से मां दुर्गा के प्रति आभार व्यक्त करने और महिलाओं के सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस वर्ष भी देशभर में महिलाओं ने उत्साहपूर्वक इस परंपरा का पालन किया और मां दुर्गा से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगा।
सिंदूर खेला के साथ-साथ धुनुची नृत्य भी दुर्गा पूजा का एक अहम हिस्सा है। धुनुची नृत्य एक पारंपरिक बंगाली नृत्य है, जिसमें भक्त हाथ में धुनुची (नारियल के खोल में जलती हुई धूप) लेकर मां दुर्गा की आराधना करते हैं। यह नृत्य दुर्गा पूजा के समापन का प्रतीक है और इसे मां दुर्गा के प्रति समर्पण और सम्मान के भाव से किया जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों में दुर्गा पूजा पंडालों में धुनुची नृत्य का आयोजन किया गया, जिसमें युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक ने भाग लिया और मां के प्रति अपने आस्था का प्रदर्शन किया।
दुर्गा पूजा सिर्फ बंगाल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अब यह देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता और अन्य प्रमुख शहरों में भी दुर्गा पूजा का आयोजन बड़े पैमाने पर हुआ। भव्य पंडालों में मां दुर्गा की मूर्तियों की स्थापना की गई थी, जहां भक्तों ने श्रद्धा के साथ पूजा-अर्चना की। दशमी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है, जिसके साथ ही पूजा का समापन होता है।
विजयादशमी के दिन भक्तों ने मां दुर्गा से अगले वर्ष फिर से आने की प्रार्थना की। विसर्जन के समय भक्तजन “आश्चे बोछोर आबार होबे” (अगले साल फिर से होगा) के नारे लगाते हुए मां से अगले साल फिर लौटने की कामना करते हैं। इस अवसर पर पूरा माहौल भक्ति और श्रद्धा से भर जाता है, और भक्तजन अपने भावनाओं को व्यक्त करते हुए मां दुर्गा को विदाई देते हैं।