अदालतअभी-अभी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, टूटे रिश्ते आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि टूटे हुए रिश्ते, जो भावनात्मक रूप से कठिन हो सकते हैं, जरूरी नहीं कि आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध के दायरे में आएं। जब तक किसी आपराधिक कृत्य को अंजाम देने के इरादे का स्पष्ट प्रमाण न हो, इसे आत्महत्या के लिए उकसाने के रूप में नहीं देखा जा सकता।जस्टिस पंकज मित्तल और उज्जल भुयान की पीठ ने कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को पलटते हुए क़मरुद्दीन दस्तगीर सनदी को बरी कर दिया। हाई कोर्ट ने उन्हें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा धोखाधड़ी और आत्महत्या के लिए उकसाने के तहत दोषी ठहराते हुए पांच साल की सजा सुनाई थी।

क़मरुद्दीन दस्तगीर पर आरोप था कि उन्होंने शिकायतकर्ता को धोखा दिया और इस कारण शिकायतकर्ता की पत्नी ने आत्महत्या कर ली। कर्नाटक हाई कोर्ट ने इसे आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध के रूप में माना था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि केवल रिश्ते टूटने या धोखाधड़ी के कारण, बिना आपराधिक इरादे के स्पष्ट सबूत के, इसे आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला नहीं माना जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला तभी बनता है जब यह सिद्ध हो कि आरोपी ने पीड़ित को आत्महत्या के लिए उकसाने के उद्देश्य से कोई कदम उठाया हो। रिश्तों में दरार और भावनात्मक परेशानियों को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।सुप्रीम कोर्ट ने इस बात का भी जिक्र किया कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) को अब भारत की नई न्याय संहिता (BNS) द्वारा बदल दिया गया है। इस फैसले को भविष्य के मामलों के लिए एक नजीर के रूप में देखा जा सकता है।

इस फैसले ने एक बार फिर न्यायपालिका के उस दृष्टिकोण को रेखांकित किया है जिसमें किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए ठोस और स्पष्ट सबूतों की आवश्यकता होती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायपालिका को हर मामले में सावधानीपूर्वक तथ्यों का विश्लेषण करना चाहिए ताकि निर्दोष व्यक्ति को सजा न हो।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button