
आज का युग तकनीक की क्रांति का है हर व्यक्ति, हर घर, हर दफ्तर डिजिटल दुनिया से जुड़ गया है। अब किसी जगह का रास्ता ढूंढना हो, सामान मंगवाना हो, दवा खरीदनी हो या अपने बैंक खाते की जानकारी देखनी हो हर काम मोबाइल ऐप, वेबसाइट या ऑनलाइन सेवा के जरिये चुटकियों में संभव है। इन तकनीकी सुविधाओं ने हमारे जीवन को पहले से कहीं ज्यादा सरल, सुगम और तीव्र बना दिया है। लेकिन इस बदलाव के साथ ही एक अदृश्य, गंभीर चिंता पनप रही है हमारी व्यक्तिगत जानकारी और प्राइवेसी दिन-ब-दिन खतरे में है। यही वह “प्राइवेसी पैराडॉक्स” है जहां हर नई सुविधा के बदले हमें अपनी निजता का एक हिस्सा खोना पड़ता है।
हम में से अधिकतर लोग सोचते हैं अगर कोई ऐप या वेबसाइट मुफ्त है, तो इसमें नुकसान क्या? पर सच तो यह है कि हम चाहे किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रोफाइल बनाएं, लोकेशन ऑन करें, या फिटनेस ट्रैकिंग बैंड पहनें इनमें से हर एक हमारी व्यक्तिगत आदतें, व्यवहार, रुचियां, संपर्क और डाटा रिकॉर्ड कर रहा है। कभी-कभी हम कोई अनुमति मांगने वाला पॉपअप बिना पढ़े “Allow” पर क्लिक कर देते हैं, जिसके बाद हमारा फोटो, लोकेशन, कॉन्टैक्ट सब उस कंपनी की नजर में पहुंच जाता है। ऐसे ही, नेट बैंकिंग, मेडिसिन ऐप, स्ट्रीमिंग सर्विस हर जगह हम अपने डेटा का एक अंश साझा करते जा रहे हैं।
तकनीकी कंपनियाँ हमें बताती हैं कि जितना ज्यादा डेटा मिलेगा, सुविधा उतनी बढ़िया होगी। सच है हम जब गूगल मैप्स पर रास्ता ढूंढते हैं या खाने की पसंद ऐप को बताते हैं, तो सुविधा बढ़ती है। लेकिन इसी सहूलियत के बीच, वे कंपनियाँ हमारी पसंद-नापसंद, आदतें, खर्च का तरीका, सोशल नेटवर्क हर चीज़ की समझ बनाती हैं। इस डेटा का इस्तेमाल सिर्फ हमें विज्ञापन दिखाने में नहीं, बल्कि भविष्य के उत्पाद डिज़ाइन करने, सामाजिक आदतों को प्रभावित करने यहाँ तक कि राजनीतिक प्रचार या विचार बदलने तक होता है। कई बार तो बिना हमारी जानकारी के हमारी निजी बातें तक लीक या बेजा इस्तेमाल हो जाती हैं।
आधुनिक सुविधा ने समाज की सोच में भी बदलाव ला दिया है। पहले हम निजी बातें सिर्फ अपनों के साथ बांटते थे, अब सोशल मीडिया पर हर छोटी-बड़ी बात शेयर करना आम हो गया है। क्या खाया, कहां गए, किससे मिले सारी जानकारी सार्वजनिक है। कई बार किशोर-वय के बच्चे या युवा बिना समझे अपनी तस्वीरें, फीलिंग्स, या निजी बातें साझा कर देते हैं, जो भविष्य में परेशानी का कारण बन सकती हैं। बड़ों-महिलाओं या वरिष्ठ नागरिकों के साथ भी डेटा चोरी, ब्लैकमेल, फर्जीवाड़ा या मानसिक उत्पीड़न जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।
इन तकनीकी मंचों की पहुंच अब सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं रही। उनकी बोहनी अरबों-खरबों डॉलर की हो रही है, क्योंकि वे हमारे डेटा को विज्ञापन कंपनियों, थर्ड पार्टी संस्थाओं या कभी-कभी सरकारों तक बेच देती हैं। आपको किसी कंपनी की पॉलिसी या शर्तें समझना तक आसान नहीं होता सैकड़ों शब्दों में लिखा “टर्म्स एंड कंडीशन” न तो आम आदमी पढ़ता है न समझता। कंपनियाँ एल्गोरिद्म के सहारे तय करती हैं कि किस यूज़र को क्या दिखाया जाए; इसमें उनकी प्राथमिकता मुनाफा और बिजनेस ही रहती है, यूज़र की निजता या सुरक्षा नहीं।
इस युग का सबसे विचित्र पहलू यह है कि सभी लोग निजता की चिंता भी करते हैं और सुविधा के लिए उसे नजरअंदाज भी कर देते हैं। हम बैंकिंग, हेल्थ या बच्चे के स्कूल की वेबसाइट पर आसानी चाहते हैं बिना निष्कर्ष के अपना डेटा दे देते हैं। स्मार्ट घर, वॉयस असिस्टेंट, फेस रिकग्निशन इनमें बहुत सुविधा है, लेकिन साथ में चुपके से निगरानी या गोपनीय डेटा का रिसाव भी है। क्या आपको पता है कि किसी फ्री वाई-फाई नेटवर्क से लॉगिन करना आपकी सारी निजी जानकारी हैकर्स तक पहुँचा सकता है?
इस समस्या का समाधान किसी एक संस्था के पास नहीं है। कानून बनाने वाले को चाहिए कि वे मजबूत, पारदर्शी और कड़ाई से लागू होने वाले डेटा सुरक्षा कानून बनाएं; कंपनियों को यूज़र डेटा का अर्थ, इस्तेमाल और उसकी सीमा स्पष्ट करें। हर नागरिक को यह समझना जरूरी है कि किसी सुविधा के लिए निजी डेटा साझा करना एक जिम्मेदारी है। जितना डेटा जरूरी हो, उतना ही दें; मजबूत पासवर्ड का उपयोग करें, सेटिंग्स चेक करें और अपने सोशल प्लेटफॉर्म की प्राइवेसी समय-समय पर अपडेट करें।
कंपनियों को भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभानी चाहिए। व्यावसायिक फायदे के लिए उपयोगकर्ता के डेटा की सुरक्षा का अनदेखा करना नीतिगत अपराध है। उन्हें यूज़र की भाषा में सबकुछ स्पष्ट बताना चाहिए, और उन्हें अपने डेटा की सुरक्षा, संपादन और हटाने का अधिकार देना चाहिए।
इंटरनेट ऑफ थिंग्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बायोमेट्रिक डेटा आगे तकनीकी विकास के साथ निजता की चुनौतियाँ और विकट होंगी। बिग डेटा, सोशल मीडिया, स्मार्ट डिवाइस इन सबकी आपसी कनेक्टिविटी समाज में नए-नए खतरे पैदा कर सकती है। बच्चों, महिलाओं, किसानों, बुजुर्गों हर वर्ग को प्राइवेसी की शिक्षा देना जरूरी है। अभिभावकों को बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल को समझना-संजना चाहिए, ताकि वे गलतियों या दुर्व्यवहार से बच सकें।
प्राइवेसी पैराडॉक्स का हल केवल तकनीक या कानून से नहीं बल्कि नागरिक चेतना, सरकारी नियमन और कंपनियों की जवाबदेही के संतुलन से ही संभव है। सुविधा और नवाचार के साथ-साथ निजता बनाए रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी भी है और अधिकार भी। आज अगर हम सजग हैं, तो कल तकनीक हमारे लिए वरदान बनी रहेगी वरना यह सुविधा कब हमारे लिए जंज़ीर बन जाए, कोई नहीं कह सकता।