
प्राकृतिक आपदाएं मानव जीवन के लिए हमेशा से चुनौती रही हैं। किसी वर्षा ऋतु में भयंकर बाढ़, किसी जगह भीषण भूकंप, कहीं तेज़ आंधी-तूफान या चक्रवात ये सब घटनाएं पल भर में हज़ारों जानें खतरे में डाल देती हैं। ऐसे समय में सबसे बड़ी दिक्कत होती है प्रभावित क्षेत्रों तक समय पर पहुँचना और राहत पहुंचाना। जब सड़कें टूटी हों, पुल बह गए हों, संचार-व्यवस्था ध्वस्त हो और हालात तेजी से बिगड़ रहे हों, तब मिनटों का समय भी अमूल्य हो जाता है। हाल के वर्षों में ड्रोन तकनीक ने इस जंग में एक नया मोर्चा खोल दिया है जहां मशीनें और मानवता मिलकर ज़िंदगी बचाने का काम कर रही हैं।
ड्रोन, जिन्हें तकनीकी भाषा में UAV कहा जाता है, अब महज फिल्म या फोटोग्राफी के लिए इस्तेमाल होने वाले उपकरण नहीं रहे। आपदा राहत में इनकी उपयोगिता इतनी बढ़ी है कि कई देशों में सरकारें और मानवीय संगठन इन्हें रेस्क्यू टीम का हिस्सा बना चुके हैं। उनकी सबसे बड़ी खासियत है फुर्ती, पहुंच और वास्तविक समय में सही जानकारी उपलब्ध कराना।
आपदा के तुरंत बाद स्थिति का आकलन करना और प्राथमिकता तय करना बेहद ज़रूरी होता है। ड्रोन इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे आसमान से प्रभावित इलाकों की विस्तृत तस्वीरें और वीडियो रीयल-टाइम में भेज सकते हैं, जिससे यह पता लगाना आसान होता है कि किस तरफ ज्यादा नुकसान हुआ है, किन रास्तों से पहुंचना संभव है और किन इलाकों को तत्काल मदद की जरूरत है।
ड्रोन में लगे हाई-रेज़ोल्यूशन कैमरे और थर्मल सेंसर मलबे में दबे लोगों की हलचल या शरीर की गर्मी को भी पहचान लेते हैं। यह खासकर भूकंप, भूस्खलन या बाढ़ जैसी परिस्थितियों में बहुत सहायक है, जहां सीधा पहुंचना संभव नहीं होता। कई बार ड्रोन दवाइयां, पानी, फर्स्ट एड किट, मोबाइल फोन और बैटरियां सीधा प्रभावित लोगों तक पहुंचा देते हैं, जिससे वे मदद आने तक जीवित रह पाते हैं।
केरल में 2018 की बाढ़ में कई गांव पूरी तरह डूब गए थे। सड़कों और पुलों के टूटने से बचाव दल फंसे लोगों तक समय पर नहीं पहुंच पा रहे थे। ड्रोन के माध्यम से न केवल बाढ़ की सटीक तस्वीरें मिलीं, बल्कि फंसे परिवारों को तत्काल दवाइयां और जरूरी सामान पहुंचाने में भी मदद हुई। उत्तराखंड में कठिन पहाड़ी इलाकों में भी ड्रोन के जरिए राहत कार्य तेज़ी से चलाए गए।
भयानक भूकंप के बाद कई इलाके पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए थे। ड्रोन की मदद से प्रभावित क्षेत्रों की 3D मैपिंग की गई, जिससे रेस्क्यू टीमों को सुरक्षित रास्ते और बड़े नुक़सान वाले स्थानों का पता लगाने में मदद मिली। हार्वे तूफान के दौरान ड्रोन ने बाढ़ के स्तर की निगरानी, लोगों की लोकेशन ट्रैक करने और त्वरित सहायता की योजना बनाने में अहम भूमिका निभाई। वहीं कैलिफोर्निया की वाइल्डफायर में ड्रोन ने आग की दिशा और हॉटस्पॉट पहचाने, जिससे फायर फाइटर्स को रणनीति बनाने में मदद मिली।
रवांडा, घाना और मालावी जैसे देशों में ड्रोन का इस्तेमाल दूरदराज गांवों तक खून, वैक्सीन और दवाइयां पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। जहां सड़क से जाने में घंटों लगते थे, वहां ड्रोन कुछ ही मिनटों में पहुंच जाते हैं और समय पर इलाज संभव हो पाता है।
ड्रोन आपदा राहत में कई मायनों में गेम-चेंजर हैं। पारंपरिक माध्यमों के मुकाबले ड्रोन बेहद तेज़ी से स्थिति का आकलन और संसाधनों की तैनाती करा सकते हैं। ड्रोन के जरिए खतरनाक इलाकों में इंसानों को भेजने की बजाय मशीन से निगरानी और डिलीवरी की जा सकती है। हेलिकॉप्टर और बड़े विमानों के मुकाबले ड्रोन ऑपरेशन काफी सस्ते पड़ते हैं, खासकर छोटे मिशनों के लिए। हाई-रेज़ोल्यूशन इमेज और वीडियो से सटीक और पारदर्शी रिपोर्टिंग संभव होती है, जिससे राहत योजना बेहतर बनती है।
हालांकि ड्रोन की उपयोगिता बहुत है, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं। कई देशों में ड्रोन उड़ाने के लिए सख्त नियम और एयरस्पेस क्लियरेंस जरूरी होती है। सीमित बैटरी लाइफ, मौसम पर निर्भरता, और रेंज की कमी कई बार बाधा बनती है। ड्रोन संचालित करने के लिए प्रशिक्षित ऑपरेटर चाहिए, वरना दुर्घटना या डेटा त्रुटि हो सकती है।
भविष्य में आपदा प्रबंधन में ड्रोन का उपयोग और व्यापक होने की संभावना है। इसके लिए जरूरी है कि सरकारें और संस्थान स्पष्ट नीतियां बनाएं, राहत टीमों को ड्रोन ट्रेनिंग दें और उपकरणों को मौसम-प्रतिरोधी व अधिक रेंज वाले बनाएं। स्थानीय स्तर पर ड्रोन नेटवर्क स्थापित करने से आपदा के शुरुआती घंटों में ही मदद पहुंचाना संभव हो जाएगा, जो जीवन बचाने का सबसे अहम समय होता है।
ड्रोन तकनीक यह साबित कर रही है कि जब इंसान संकट में होता है, तब विज्ञान और मानवीय संवेदना मिलकर उम्मीद की नई राह बना सकते हैं। आसमान में मंडराता एक छोटा सा ड्रोन भले मशीन हो, लेकिन आपदा के समय यह जीवन का रक्षक, संदेशवाहक और उम्मीद का प्रतीक बन जाता है। आने वाले समय में, अगर हम तकनीक का सही, सुरक्षित और पारदर्शी इस्तेमाल जारी रखें, तो हर आपदा में मदद की गति बढ़ेगी और अनगिनत जानें बचाई जा सकेंगी।