स्विट्ज़रलैंड में 1 जनवरी 2025 से सार्वजनिक स्थानों पर बुरका पर लगेगा प्रतिबंध
स्विट्ज़रलैंड, जो पहले से ही अपने सख्त कानूनी ढांचे के लिए जाना जाता है, ने 1 जनवरी 2025 से सार्वजनिक स्थानों पर बुरका पहनने पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया है। स्विट्ज़रलैंड के संघीय परिषद (Federal Council) ने इस बारे में आधिकारिक घोषणा की है। इस कदम का उद्देश्य सार्वजनिक स्थलों पर सुरक्षा और सामूहिक शांति सुनिश्चित करना है।
स्विट्ज़रलैंड के संघीय परिषद ने बताया कि 1 जनवरी 2025 से प्रभावी होने वाला यह कानून पूरे देश में लागू होगा, और इसके तहत बुरका पहनने या चेहरे को ढकने पर रोक लगाई जाएगी। यह कदम उन देशों की कतार में स्विट्ज़रलैंड को शामिल करेगा जिन्होंने सार्वजनिक स्थानों पर बुरका या अन्य चेहरा ढकने वाले कपड़ों पर प्रतिबंध लगाया है। इस कदम के बाद स्विट्ज़रलैंड में सार्वजनिक स्थानों जैसे कि मॉल, सड़कों, सार्वजनिक परिवहन आदि पर बुरका पहनने पर पाबंदी होगी।
स्विट्ज़रलैंड सरकार के अनुसार, जो लोग इस नियम का उल्लंघन करेंगे, उन्हें 1,000 स्विस फ्रैंक (लगभग 96,280 भारतीय रुपये) तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है। हालांकि, इस कानून में कुछ छूट भी दी गई हैं, जिनमें धार्मिक स्थलों पर धार्मिक परिधान के रूप में बुरका पहनने की अनुमति हो सकती है, लेकिन यह नियम आम सार्वजनिक स्थानों पर लागू होगा।
स्विट्ज़रलैंड सरकार का मानना है कि यह कदम सुरक्षा बढ़ाने और सार्वजनिक स्थलों पर सभी नागरिकों के लिए समान अवसर और सशक्तिकरण सुनिश्चित करने में मदद करेगा। इस कानून को लेकर सरकार का कहना है कि यह कदम विशेष रूप से महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने के लिए है, क्योंकि कई मानवाधिकार संगठन इसे महिलाओं के स्वायत्तता के लिए खतरे के रूप में देखते हैं।
स्विट्ज़रलैंड के इस फैसले के साथ, अब कई यूरोपीय देशों में इस तरह के कानूनों का पालन किया जा रहा है, जिसमें बुरका या चेहरे को पूरी तरह से ढकने वाले कपड़े पहनने पर प्रतिबंध है।स्विट्ज़रलैंड में इस फैसले पर विभिन्न प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। जहां एक ओर कुछ राजनीतिक दल और अधिकार समूह इसे महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने वाला कदम मानते हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ का मानना है कि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रतिबंध है और लोगों के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
इस फैसले को लेकर मुस्लिम समुदाय के कुछ संगठनों ने भी विरोध जताया है, और उनका कहना है कि यह कदम मुस्लिम महिलाओं के धार्मिक अधिकारों को बाधित कर सकता है। हालांकि, सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि यह कानून किसी भी विशेष धर्म या समुदाय के खिलाफ नहीं है, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा और समानता को बढ़ावा देने के लिए है।