बॉम्बे हाईकोर्ट ने सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति की उम्रकैद की सजा की निलंबित
हाईकोर्ट ने सिज़ोफ्रेनिया के आधार पर दी राहत
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को 35 वर्षीय एक व्यक्ति की उम्रकैद की सजा को निलंबित कर दिया, जिसे 2015 में अपने पिता की हत्या के आरोप में दोषी ठहराया गया था। अदालत ने मानसिक बीमारी सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित होने के आधार पर उसे जमानत प्रदान की।
अदालत ने व्यक्ति की सिज़ोफ्रेनिया से जुड़ी चिकित्सीय रिपोर्टों और उसकी मानसिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने यह भी माना कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी की पागलपन की दलील को सही ढंग से नहीं समझा और उसे पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया।
सिज़ोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है, जो व्यक्ति के सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के तरीके को प्रभावित करती है। इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को मतिभ्रम (hallucinations), भ्रम (delusions) और अनुचित विचार जैसे लक्षण हो सकते हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक विकार (psychotic disorder) है, जिसमें मरीज वास्तविकता से दूर होता है।
2015 में आरोपी को अपने पिता की हत्या के मामले में दोषी करार दिया गया था और उसे आजीवन कारावास (life imprisonment) की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, ट्रायल के दौरान उसकी मानसिक स्थिति पर पूरी तरह विचार नहीं किया गया था।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने दोषी की मानसिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए सजा को स्थगित (suspend) कर दिया और उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।यह मामला मानसिक बीमारियों के प्रति न्यायपालिका के संवेदनशील दृष्टिकोण को दर्शाता है और यह संकेत देता है कि गंभीर मानसिक रोग से पीड़ित अपराधियों के मामलों की समीक्षा करते समय उनके मानसिक स्वास्थ्य को उचित महत्व दिया जाना चाहिए।