
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल किए जाने को लेकर केंद्र सरकार द्वारा दी गई दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कड़ी आपत्ति जताई। केंद्र ने अपनी दलील में कहा था कि अगर वक्फ से जुड़े मामलों की सुनवाई में केवल मुसलमान ही शामिल हो सकते हैं, तो फिर हिंदू जजों की पीठ को वक्फ मामलों की सुनवाई का अधिकार नहीं होना चाहिए।
इस तर्क पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त प्रतिक्रिया दी। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “हम केवल निर्णय देने की बात नहीं कर रहे हैं। जब हम यहां बैठते हैं, तो हम अपना धर्म छोड़ देते हैं। हम पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष हैं। हमारे लिए दोनों पक्ष समान होते हैं।”
केंद्र सरकार ने वक्फ अधिनियम के तहत गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति को उचित ठहराते हुए कहा कि न्यायिक मामलों में भी धर्म के आधार पर भेद नहीं किया जाता। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तुलना को “अनुचित” बताया और कहा कि यह तर्क न्यायिक प्रक्रिया की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को समझे बिना दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ अधिनियम की कुछ धाराओं की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है, जिसमें गैर-मुस्लिमों की वक्फ बोर्ड में नियुक्ति का प्रावधान भी शामिल है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि वक्फ, एक धार्मिक मुस्लिम संस्था है, और उसमें केवल मुसलमानों को ही प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्यायपालिका की भूमिका न्याय सुनिश्चित करने की होती है, न कि धार्मिक पहचान के आधार पर पक्ष चुनने की। उन्होंने कहा, “हम जब न्याय की कुर्सी पर बैठते हैं, तब किसी धर्म, जाति या समुदाय से नहीं बंधे होते। हमारा धर्म केवल संविधान है।”
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई जारी रखते हुए केंद्र सरकार को अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है। साथ ही, अदालत ने संकेत दिया कि वह इस संवेदनशील मुद्दे पर संतुलित और संवैधानिक दृष्टिकोण से निर्णय देगी।यह मामला अब सिर्फ वक्फ बोर्ड की संरचना का नहीं रह गया है, बल्कि इसमें न्यायपालिका की धर्मनिरपेक्षता और धर्म आधारित नियुक्तियों की संवैधानिकता का सवाल भी प्रमुख हो गया है।