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भारत रत्न – योगदान को सम्मान या वोट जुटाने की कोशिश..??

                        

 भारत रत्न भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। यह सम्मान राष्ट्रीय सेवा के लिए दिया जाता है। इन सेवाओं में कला, साहित्य, विज्ञान, सार्वजनिक सेवा और खेल शामिल है। इस सम्मान की स्थापना 2  जनवरी 1954  में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद द्वारा की गई। समाज और देश में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत रत्न के पश्चात पद्म बिभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री सम्मान दिए जाते हैं।

भारत रत्न से सबसे पहले 1954 में गवर्नर जनरल सी. रजपोगालाचारी, डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन और वैज्ञानिक सी. वी. रमन को नवाजा गया………तत्पश्चात पंडित नेहरू, इंदिरा गाँधी, सरदार पटेल, डॉ अंबेडकर , मदन मोहन मालवीय और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सहित अनेक महापुरुषों को इस सर्वोच्च सम्मान से नवाजा गया है। इस वर्ष सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवाद के पुरोधा कर्पूरी ठाकुर, बीजेपी के वरिष्ठ नेता और देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण अडवाणी, पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के सर्वमान्य नेता चौधरी चरण सिंह, कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सहित कुल 5 बिभूतियों को इस अलंकरण से सम्मानित किया है.

भारत रत्न से अलंकृत इन पाँचों बिभूतियों का यकीनन राष्ट्र और समाज निर्माण में अतुलनीय योगदान है पर इस बार इसमें सम्मान के साथ-साथ वोट साधने की कवायद भी दिख रही है…ऐसा लग रहा है कि सरकार इस सर्वोच्च सम्मान के जरिये पोलिटिकल मैसेजिंग की कोशिश कर रही है, चाहे वो पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह को भारत रत्न देकर जाट बहुल वोटरों को अपने पक्ष में खींचना हो या चाहे पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को भारत रत्न देकर आंध्र प्रदेश में अपने लिए राजनैतिक  जमीन तलाशना।

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवाद के स्तम्भ कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर जहाँ सरकार  बिहार में महागठबंधन में फुट डालकर सत्तरूढ़ JDU को अपने पाले में खीचने में कामयाब रही तो वही सरकार पिछड़े वर्ग तक अपना सन्देश “सबका साथ” पहुंचने में भी कामयाब रही…..कर्पूरी ठाकुर को सम्मान देकर सरकार ने उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े प्रदेशों में क्षेत्रीय दलों के समाजवाद के नाम परिवारवाद पर भी निशाना साधा है। उत्तर प्रदेश और बिहार में जहां क्रमशः समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जो की पुराने समाजवादी नेताओं द्वारा स्थापित राजनैतिक दल है आज परिवारवाद के गिरफ्फत हैं तो वही  कर्पूरी ठाकुर उस समाजवादी विचार के समर्थक है जहाँ परिवार के लिए राजनीती में कोई स्थान नहीं था।

भारतीय जनता पार्टी के जिन नामों को पूरी पार्टी को खड़ा करने और उसे राष्ट्रीय स्तर तक लाने का श्रेय जाता है उसमें सबसे अग्रणी नाम है लालकृष्ण आडवाणी। लालकृष्ण आडवाणी कभी पार्टी के कर्णधार कहे गए, कभी लौह पुरुष और कभी पार्टी का असली चेहरा। कुल मिलाकर पार्टी के आजतक के इतिहास का अहम अध्याय हैं लालकृष्ण आडवाणी।

श्यामा प्रसाद मुख़र्जी द्वारा 1951 में जनसंघ की स्थापना से लेकर 1957 तक आडवाणी जनसंघ के सचिव रहे और फिर 1973 से 1977 तक आडवाणी ने जनसंघ के अध्यक्ष का दायित्व संभाला। 1980 में भारतीय जनता पार्टी पार्टी के सस्थापक सदस्यों में से एक लाल कृष्ण आडवाणी 1986 से 1991 तक पार्टी के अध्यक्ष पद बन आसीन रहे और अपने अध्यक्ष पद पर बने रहने के दौरान आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन के दौर में राम रथ यात्रा निकली और मंडल कमीशन से इतर अपने और अपनी पार्टी के लिए बेहद मजबूत राजनैतिक बुनियाद तैयार की।

आडवाणी द्वारा निकली गयी राम रथ यात्रा सोमनाथ से शुरू होकर आयोध्या तक निर्धारित की गयी थी पर यात्रा के बीच में ही आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया और इस गिरफ्तारी के  बाद आडवाणी का राजनैतिक कद और भी ऊँचा हो गया और हिन्दूवादी नेता के तौर उनकी छवि और सुदृढ़ हो गयी।

आज भारतीय जनता पार्टी केंद्र और कई राज्यों में सत्ता पर काबिज़ है तो इसका श्रेय यक़ीनन आडवाणी जी द्वारा रखी गयी मजबूत बुनियाद को जाता है…पर बावजूद इसके 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद आडवाणी राजनैतिक रूप से पार्टी के भीतर हाशिये पर चले गए। उनकी इस अनदेखी से पार्टी का एक धड़ा नाखुश हो गया और समय-समय पर पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के द्वारा इस बात की तस्दीक़ भी की गयी…..पर अब आडवाणी को भारत रत्न देकर नरेंद्र मोदी को नाराज चल रहे पार्टी कार्यकर्ताओं के गिले- शिकवे दूर करने और उनमे नयी ऊर्जा का संचार करने में यक़ीनन कामयाबी मिलेगी, और इस प्रकार चुनावी मौसम में आडवाणी को भारत रत्न देना पार्टी और सरकार के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है.  

आडवाणी और कर्पूरी ठाकुर के अलावा जाट नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित कर सरकार ने जाटलैंड और किसानों के बीच अपनी छवि को सुधारा है और सरकार के इस निर्णय को पिछले कुछ समय से सरकार से नाराज चल रहे जाट समुदाय और किसानों की तरफ उठाया गया एक सकारात्मक कदम के तौर पर भी देखा जा रहा है।

चरण सिंह जी को भारत रत्न देने के साथ ही सरकार उनके पोते और लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी को अपने पाले में  खींचने में भी कामयाब रही। इसके साथ ही कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन को  उनके योगदान के लिए भारत रत्न से नवाजा गया… सरकार के इस कदम से भी किसानों के बीच सरकार की छवि को लेकर एक सकारात्मक संदेश गया है क्यूंकि स्वामीनाथन किसान और किसान संगठनों के दिल में बसते हैं। किसान जिस MSP के कानून को लेकर पिछले कुछ समय से आंदोलनरत हैं उसकी सिफारिश स्वामीनाथन आयोग द्वारा ही की गई थी और MSP की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे किसानों का एक बड़ा हिस्सा पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ताल्लुक़ रखता है। ऐसे में  चरण सिंह और स्वामीनाथन को भारत रत्न देने के इस फैसले से किसानों के बीच ख़ुशी का माहौल है और सरकार को लेकर सकारात्मक रुख भी जिसका फायदा सरकार को 2 महीने बाद होने वाले आम चुनावों में मिलने की पूरी संभावना है.

पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव इस साल भारत रत्न से सम्मानित पाँचवी शख्शियत हैं।  नरसिम्हा राव नेहरू गाँधी परिवार से इतर कांग्रेस के ऐसे पहले प्रधानमंत्री है जिन्होंने पुरे 5 साल प्रधानमंत्री पद पर सफलता पूर्वक काम किया, पर अपने पूर्व कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों  की तरह राव मीडिया और Intellectuals के बीच उतने चर्चित नहीं रहे। नरसिम्हा राव ने प्रधानमत्री रहते हुए इकनोमिक रिफार्म के जरिये देश के अर्थव्यवस्था को एक नयी दिशा दी और आज जब भारत दुनिया की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर दुनिया के सामने खड़ा है तब पूर्व प्रधानमंत्री राव के योगदान और उनके द्वारा 1991 में बतौर प्रधानमंत्री लिए गए फैसलों की भी चर्चा होना वाजिब है.

लाइसेंस राज ख़त्म कर देश को एक खुली अर्थव्यवस्था बना कर प्रधानमंत्री राव ने ऐतिहासिक कार्य  किया। पूर्व प्रधानमंत्री राव को “Father Of  Economic Reforms” के नाम से भी जाना जाता है। नरसिम्हा राव को भारत रत्न देना सरकार द्वारा दक्षिण भारत के राज्यों में अपने लिए सियासी जमीन तैयार करने की एक कोशिश के तौर पर भी देखा जा सकता है, तो वही कोंग्रेस और उनके इकोसिस्टम पर भी निशाने के तौर पर भी जिसमे नेहरू-गाँधी परिवार से बहार के किसी भी नेता को वो तवज्ज़ो नहीं मिलती जिसके वो हकदार हैं.

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