
इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने सोमवार को 70 घंटे के कार्य सप्ताह के अपने बयान पर सफाई दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी को भी जबरदस्ती यह नियम लागू करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।पिछले साल नारायण मूर्ति ने युवा भारतीयों को 70 घंटे प्रति सप्ताह काम करने की सलाह दी थी, जिससे सोशल मीडिया पर तीखी बहस छिड़ गई थी। कई लोगों ने इसे अव्यवहारिक बताया, जबकि कुछ ने इसे आत्म-अनुशासन बढ़ाने के रूप में देखा।
नारायण मूर्ति ने यह बयान मुंबई में आयोजित आईएमसी के किलाचंद मेमोरियल लेक्चर के दौरान दिया। उन्होंने कहा:”यह पूरी तरह से व्यक्ति की पसंद पर निर्भर करता है।””कोई भी किसी को यह नहीं कह सकता कि आपको ऐसा करना चाहिए या ऐसा नहीं करना चाहिए।”
मूर्ति ने अपने विचार को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह टिप्पणी देश के विकास में योगदान देने के लिए अधिक मेहनत और समय देने को लेकर थी।उन्होंने युवाओं से कहा था कि यदि भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना है, तो प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता से अधिक योगदान देना होगा।मूर्ति का मानना है कि भारत को विकसित देशों की बराबरी करने के लिए अधिक परिश्रम करना होगा।
उनकी टिप्पणी पर सोशल मीडिया पर विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं, कुछ लोगों ने इसे आत्म-अनुशासन और कार्य नैतिकता को मजबूत करने के लिए जरूरी बताया।कई लोगों ने इसे अव्यवहारिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला कहा।
मूर्ति ने यह भी कहा कि कार्य संस्कृति और मेहनत को समझने के लिए हर देश का अलग दृष्टिकोण होता है। उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे विकसित देशों में लोग अधिक मेहनत करते हैं और अपने समय का कुशलतापूर्वक उपयोग करते हैं।नारायण मूर्ति ने अपने बयान के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह महज एक प्रेरणा देने वाली सलाह थी, न कि एक अनिवार्य नियम।