नेपाल में अस्थिरता और भारत पर उसके संभावित प्रभाव

हिमालय की गोद में बसा नेपाल, भौगोलिक दृष्टि से छोटा जरूर है, लेकिन उसका राजनीतिक, सामरिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत बड़ा है। भारत और नेपाल के बीच न सिर्फ 1750 किलोमीटर लंबी खुली सीमा है, बल्कि ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्ते भी गहरे हैं। ऐसे में नेपाल में बार-बार पैदा होने वाली राजनीतिक अस्थिरता केवल काठमांडू तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इसका सीधा असर भारत की आंतरिक और बाहरी नीतियों पर भी पड़ता है।
नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता: पृष्ठभूमि
नेपाल का इतिहास पिछले तीन दशकों से राजनीतिक उतार-चढ़ाव का गवाह रहा है। 1990 के दशक में राजशाही से बहुदलीय लोकतंत्र की ओर संक्रमण हुआ, लेकिन जल्द ही माओवादी विद्रोह, गृहयुद्ध और सत्ता संघर्ष ने देश को झकझोर दिया। 2008 में राजशाही का अंत हुआ और नेपाल एक गणराज्य बना। उम्मीद थी कि स्थिरता आएगी, लेकिन राजनीतिक दलों के बीच वर्चस्व की लड़ाई, संवैधानिक मुद्दे और बाहरी शक्तियों का हस्तक्षेप ने हालात को और उलझा दिया।
आज भी नेपाल लगातार सरकार बदलने, अविश्वास प्रस्तावों, गठबंधन राजनीति और कमजोर नेतृत्व से जूझ रहा है। जनता के बीच असंतोष बढ़ रहा है और यही अस्थिरता भारत के लिए चिंता का विषय बन जाती है।
भारत-नेपाल संबंधों का आधार
भारत और नेपाल के संबंध सिर्फ कूटनीतिक या आर्थिक नहीं हैं, बल्कि ये रिश्ते रक्त संबंधों जैसे हैं। लाखों नेपाली नागरिक भारत में रोज़गार पाते हैं, तो भारत के कई लोग नेपाल में व्यापार करते हैं। दोनों देशों के बीच वीज़ा-मुक्त आवागमन है। धार्मिक रूप से भी काठमांडू का पशुपतिनाथ मंदिर और अयोध्या-जनकपुर की राम-सीता परंपरा दोनों देशों के हृदय को जोड़ती है।
भारत, नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। पेट्रोलियम, दवाइयाँ, खाद्य पदार्थ, मशीनरी और रोज़मर्रा की वस्तुएँ भारत से नेपाल जाती हैं। इसी तरह नेपाल की जलविद्युत परियोजनाएँ भारत के लिए भविष्य में ऊर्जा का स्रोत हो सकती हैं। ऐसे में अगर नेपाल अस्थिर रहता है, तो भारत के हित भी प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगे।
अस्थिर नेपाल और भारत पर संभावित प्रभाव
- सीमा सुरक्षा पर असर
भारत-नेपाल सीमा खुली है। सामान्य दिनों में यह सांस्कृतिक और आर्थिक संपर्क का पुल है, लेकिन अस्थिरता के दौर में यही खुली सीमा भारत के लिए चुनौती बन सकती है। विद्रोही समूह, माओवादी संगठन या विदेशी खुफिया एजेंसियाँ इस सीमा का इस्तेमाल भारत के भीतर अस्थिरता फैलाने के लिए कर सकती हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड जैसे सीमावर्ती राज्यों पर इसका दबाव पड़ सकता है।
- चीन का बढ़ता प्रभाव
नेपाल की अस्थिर राजनीति का सबसे बड़ा फायदा चीन को मिलता है। जब भी काठमांडू की सरकार कमजोर होती है, चीन आर्थिक मदद, निवेश और राजनीतिक समर्थन के जरिए अपनी पकड़ मजबूत करता है। “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” (BRI) के तहत नेपाल को जोड़ने की कोशिशें भारत के लिए सामरिक चुनौती हैं। अस्थिरता के कारण नेपाल अगर चीन की ओर और झुकता है, तो भारत की उत्तरी सीमाएँ रणनीतिक खतरे में पड़ सकती हैं।
- आर्थिक प्रभाव
नेपाल भारत पर आयात के लिए अत्यधिक निर्भर है। लेकिन अस्थिरता की स्थिति में व्यापारिक मार्ग बाधित होते हैं, जिससे दोनों देशों के कारोबारी प्रभावित होते हैं। भारत के सीमावर्ती कस्बों और बाज़ारों की अर्थव्यवस्था नेपाल पर निर्भर है। नेपाल में राजनीतिक संकट या जनता का आंदोलन अक्सर इन क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को झटका देता है।
- श्रमिक और प्रवासी मुद्दे
लाखों नेपाली नागरिक भारत में मजदूरी और रोज़गार के लिए आते हैं। अस्थिर नेपाल से पलायन और बढ़ सकता है। इससे भारत के श्रम बाज़ार में दबाव पैदा हो सकता है और सामाजिक संतुलन बिगड़ सकता है।
- धार्मिक और सांस्कृतिक तनाव
नेपाल में अस्थिरता अक्सर राष्ट्रवाद और भारत-विरोधी भावनाओं के रूप में सामने आती है। कुछ राजनीतिक दल चुनावी लाभ के लिए भारत को दोषी ठहराते हैं। इससे दोनों देशों के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक रिश्तों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
- हिमालयी पारिस्थितिकी और जल विवाद
नेपाल से निकलने वाली नदियाँ भारत के गंगा बेसिन में मिलती हैं। अस्थिरता की वजह से जल परियोजनाओं पर सहयोग ठप हो सकता है, जिससे बाढ़ नियंत्रण और जलविद्युत उत्पादन पर असर पड़ेगा।
भारत के लिए रणनीतिक विकल्प
- संतुलित कूटनीति
भारत को नेपाल की आंतरिक राजनीति में सीधा हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए, लेकिन लोकतांत्रिक और स्थिर सरकार के लिए समर्थन जारी रखना जरूरी है। इससे भारत विरोधी धारणा कमजोर होगी।
- आर्थिक सहयोग और निवेश
भारत को नेपाल की आधारभूत संरचना (सड़क, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा) में निवेश बढ़ाना चाहिए। अगर नेपाली जनता को लगेगा कि भारत उनके विकास का साझेदार है, तो अस्थिरता का असर कम होगा।
- सीमा प्रबंधन
भारत को सीमा पर निगरानी बढ़ानी होगी। आधुनिक तकनीक, इंटेलिजेंस नेटवर्क और स्थानीय समुदाय की भागीदारी से अवैध गतिविधियों को रोका जा सकता है।
- चीन की चुनौती का मुकाबला
भारत को चीन से प्रतिस्पर्धा करने के बजाय नेपाल के साथ ‘विश्वसनीय साझेदार’ बनने पर ध्यान देना चाहिए। सांस्कृतिक जुड़ाव और सामाजिक रिश्ते भारत को वह बढ़त देते हैं, जो चीन के पास नहीं है।
- जन-जन का रिश्ता
भारत को चाहिए कि वह नेपाली छात्रों, युवाओं और उद्यमियों को विशेष अवसर दे। छात्रवृत्ति, कौशल प्रशिक्षण और स्टार्टअप समर्थन से नेपाल का नया नेतृत्व भारत के प्रति सकारात्मक रहेगा।
निष्कर्ष
नेपाल की अस्थिरता भारत के लिए सिर्फ पड़ोसी देश की समस्या नहीं है, बल्कि यह उसकी अपनी सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और कूटनीति से जुड़ा प्रश्न है। भारत-नेपाल संबंध जितने गहरे हैं, उतने ही संवेदनशील भी हैं। अगर नेपाल लगातार अस्थिर रहता है, तो भारत की उत्तरी सीमाएँ, व्यापारिक हित, सांस्कृतिक रिश्ते और सामरिक संतुलन सभी प्रभावित होंगे।
इसलिए भारत के लिए यह जरूरी है कि वह नेपाल को सिर्फ पड़ोसी देश के रूप में न देखे, बल्कि उसे अपने रणनीतिक और सांस्कृतिक परिवार का हिस्सा समझकर दीर्घकालिक सहयोग की नीति अपनाए। स्थिर नेपाल, भारत के लिए सुरक्षा का कवच है, और अस्थिर नेपाल उसकी कमजोरी का कारण बन सकता है।