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इंटरनेट दरों के नियमन की याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज, उपभोक्ताओं को दी गई CCI से संपर्क की सलाह

BSNL और MTNL जैसी सरकारी सेवाएं भी उपलब्ध

सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट दरों के नियमन की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश संजिव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इंटरनेट सेवाओं का बाजार स्वतंत्र रूप से संचालित हो रहा है और उपभोक्ताओं के पास कई विकल्प उपलब्ध हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि सरकार की ओर से BSNL और MTNL जैसी सेवाएं भी मौजूद हैं, इसलिए इंटरनेट दरों के लिए कोई विशेष नियमन आवश्यक नहीं है।

मुख्य न्यायाधीश संजिव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “इंटरनेट सेवाओं का बाजार खुला है और उपभोक्ताओं के पास कई विकल्प मौजूद हैं। यदि किसी को यह लगता है कि सेवा प्रदाताओं के बीच कोई ‘कार्टेलाइजेशन’ (मिलकर कीमतें तय करने की कोशिश) हो रही है, तो वह भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) से संपर्क कर सकता है।”

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दावा किया था कि इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियां मनमानी दरें वसूल रही हैं और उपभोक्ताओं को उचित दरों पर इंटरनेट सेवा नहीं मिल रही है। याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि सरकार को इंटरनेट दरों के लिए एक नियामक ढांचा तैयार करने का निर्देश दिया जाए ताकि उपभोक्ताओं को राहत मिल सके।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की मांग को अस्वीकार कर दिया और कहा कि इंटरनेट एक प्रतिस्पर्धी बाजार है जहां कई निजी और सरकारी कंपनियां सेवाएं दे रही हैं। अदालत ने यह भी जोड़ा कि यदि याचिकाकर्ता को कोई गड़बड़ी लगती है, तो वह CCI के पास अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार के मुद्दे पर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) सही मंच है। यदि याचिकाकर्ता के पास यह प्रमाण है कि इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियां आपस में मिलकर उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचा रही हैं, तो वह CCI में शिकायत दर्ज करा सकते हैं।सुप्रीम कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि BSNL, MTNL जैसी सरकारी सेवाएं अब भी बाज़ार में उपलब्ध हैं और उपभोक्ता इन्हें चुन सकते हैं। इसके अलावा निजी कंपनियों की बड़ी संख्या और उनके विभिन्न प्लान्स उपभोक्ताओं को पर्याप्त विकल्प प्रदान करते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि इंटरनेट सेवाओं का बाजार फिलहाल स्वतंत्र रूप से संचालित हो रहा है और नियामक हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, यदि कोई कंपनी उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ कार्य करती है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

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