ओपिनियनस्‍वास्‍थ्‍य

नई चिंता की दस्तक—बच्चों में बढ़ते हार्ट अटैक के पीछे छुपे कारण और समाधान

बदलती जीवनशैली और बचपन की असुरक्षा

कुछ साल पहले तक ज्यादातर लोग ये मानते थे कि दिल से जुड़ी बीमारियाँ, खासतौर पर दिल का दौरा, केवल बड़े लोगों की या वरिष्ठ नागरिकों की समस्या है। बचपन का मतलब था खिलखिलाहट, ऊर्जा, हर छोटी तकलीफ से जल्दी उबर जाना। परन्तु, आज के समय में यह धारणा धीरे-धीरे टूट रही है। अब छोटे-छोटे बच्चों में भी अचानक हार्ट अटैक या गंभीर दिल की समस्या की खबरें इतनी बढ़ गई हैं कि अभिभावक ही नहीं, डॉक्टर और स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी सचेत हो चुके हैं।

सम्प्रति, भारत समेत पूरी दुनिया में बच्चों में दिल से जुड़ी बीमारियों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। कहीं कोई बच्चा स्कूल की शारीरिक शिक्षा क्लास में अचानक बेहोश हो गया, तो कहीं पार्क या घर में खेलते हुए उसका दिल थम गया। युवा दिल कमजोर क्यों पड़ रहे हैं? डॉक्टरों से लेकर माता-पिता तक, हर कोई इस सवाल का जवाब तलाश रहा है।

महामारी के बाद से बच्चों में अचानक आई बीमारियाँ, रोग प्रतिरोधक क्षमता में अनियमितता और तनाव ने कई नई समस्याओं के द्वार खोल दिए हैं। कोविड-19 संक्रमण के बाद कुछ बच्चों में हृदय संबंधी सूजन या जटिलता देखी गई। कई बार माता-पिता को समय पर कोई लक्षण पता ही नहीं चलता और जब तक वे समझते हैं, तब तक बच्चा बहुत आगे निकल जाता है। यह तथ्य समाज को गहराई से सोचने को मजबूर करता है कि क्या हम बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर पर्याप्त जागरूक हैं?

इसकी वजहें बहुआयामी हैं। पारंपरिक और आधुनिक जीवनशैली, खानपान की आदतें, बढ़ता तनाव, बदलती दिनचर्या, शरीर में सूजन या हार्मोनल असंतुलन ये सभी मिलकर बच्चों के दिल की सेहत पर नकारात्मक असर डाल रहे हैं।

कुछ बच्चों के दिल की बनावट जन्म से ही सामान्य नहीं होती। यह समस्या इतनी जटिल हो सकती है कि कभी-कभी कोई लक्षण ही नहीं दिखता, लेकिन फिर अचानक बड़ा संकट खड़ा हो जाता है। बच्चों का दिल और उनका शरीर अपनी कमजोरी जल्दी जाहिर नहीं करता, और इसी चुप्पी में खतरा छुपा रहता है।

अगर किसी परिवार में पहले से दिल से संबंधित बीमारी रही हो तो बच्चों में जोखिम बढ़ जाता है। यह अनुवांशिकता बच्चों के जीवन को बिना किसी संकेत के प्रभावित कर सकती है। इसीलिए, डॉक्टर परिवार के स्वास्थ्य इतिहास पर ज़रूर ध्यान देते हैं और ऐसी स्थिति में अतिरिक्त सतर्कता की जरूरत है।

बदलते मौसम, महामारी, और खानपान से जुड़े कारणों की वजह से बच्चों में संक्रमण और वायरल बीमारियाँ कभी-कभी दिल की मांसपेशी या रक्त प्रवाह को प्रभावित कर देती हैं। ‘मायोकार्डिटिस’ और ‘कावासाकी’ जैसी बीमारियां पहले बेहद दुर्लभ थीं, लेकिन अब इनका ग्राफ ऊपर चढ़ रहा है।

आज के बच्चों की दिनचर्या में बेमतलब की दौड़-दौड़ कम और मोबाइल या टीवी के आगे बिताया गया समय ज्यादा दिखता है। जंक फूड, फास्ट फूड, तली-भुनी चीज़ें, पैकेट वाले स्नैक्स, सॉफ्ट ड्रिंक, मिठाई, चॉकलेट्‍स अब बच्चों का मनपसंद हिस्सा बन चुकी हैं। इसका असर धीरे-धीरे उनकी धमनियों पर पड़ता है जिससे ब्लॉकेज, हाई कोलेस्ट्रॉल, मोटापा और रक्तचाप की समस्या बढ़ती जाती है।

गली-मोहल्ले के खेल या आउटडोर एक्टिविटी में अब बच्चों की भागीदारी बेहद घट गई है। स्कूल की पीटी क्लासेस भी अधिकांश जगह केवल औपचारिकता रह गई हैं। रोज़ाना खेलकूद न होने पर बच्चों की दिल की मांसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं। यह जड़ें बच्चों की सेहत में बचपन में ही लग जाती हैं।

कोरोना के बाद से बच्चों पर पढ़ाई और अकादमिक प्रदर्शन का दबाव पहले से अधिक बढ़ा है। मॉडर्न जीवनशैली और सोशल मीडिया भी बच्चों के मन में लगातार तनाव पैदा करता है। नींद पूरी न होना, एक्साम का तनाव, लगातार स्क्रीन के आगे रहना—ये उनके हॉर्मोनल संतुलन को बिगाड़ते हैं, जिससे दिल के कई जटिल मसले सामने आ सकते हैं।

कुछ बच्चों को जन्म से या किशोरावस्था में थायरॉयड, डायबिटीज़ या क्लॉटिंग संबंधित विकार होते हैं, जिससे खून का प्रवाह बाधित या गाढ़ा हो जाता है। यह भी दिल के लिए खतरनाक हो सकता है।

हमारी समस्या यही है कि अक्सर दिल की बीमारी के इशारे बच्चे खुद नहीं बता सकते। अभिभावकों, शिक्षकों के लिए जरूरी है कि अगर बच्चा किसी भी तरह की असामान्य बेचैनी, लगातार थकान, बार-बार चक्कर, दौड़ते या खेलने पर असहजता, पसीना, उलझन, साँस लेने में कठिनाई या कभी-कभी अचानक बेहोशी महसूस करे तो बिल्कुल अनदेखा न करें।

चोट, सांस फूलना, नाखून या होंठ का रंग बदलना, सिरदर्द या सीने में हल्का सा भी दर्द इन सब संकेतों पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लें। इनकी जल्दी पहचान किसी बड़े संकट से बच्चों की जिंदगी बचा सकती है।

नवजात बच्चे से लेकर किशोर तक, हर बच्चे की समय–समय पर मेडिकल जांच बेहद जरूरी है। जन्म के बाद यदि परिवार में कोई हिस्ट्री या लक्षण दिखे तो हार्ट का स्पेशल चेकअप जरूर कराएं। स्कूल में वार्षिक हेल्थ चेकअप को गंभीरता दें और जरूरी रिपोर्ट्स डॉक्टर से साझा करें।

बच्चों का भोजन रंग-बिरंगा, पौष्टिक और विविधताओं से भरा होना चाहिए। घर का बना खाना, हरी सब्ज़ियाँ, ताजे फल, दालें, दूध, नट्स और साबुत अनाज बच्चे की थाली में रोज़ाना शामिल करें। पैकेट फूड, बाजार की मिठाई, फास्ट फूड केवल समय-समय पर या बिल्कुल नियंत्रण में ही दें।

दिनभर का समय टीवी या मोबाइल पर बैठकर न बिताएं। बच्चों के आउटडोर गेम्स, साइकलिंग, दौड़, योग, खेलकूद को नियमित दिनचर्या का हिस्सा बनाएं। खुद भी साथ खेलें और उन्हें दोस्ती, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा, और रोज़ाना जश्न का ज़रिया मानें।बच्चों के मन की बात सुनें, उनकी उलझनें साझा करें। पढ़ाई, परीक्षा या तुलना का अत्यधिक दबाव न बनाएं। बचपन को महत्त्व दें, मार–पीट, डांट या सांस्कृतिक तुलना से दूर रहें। अगर बच्चा निराश, अकेला या उदास है तो उससे खुलकर बात करें। जरूरत पड़े तो बाल मनोवैज्ञानिक से सलाह लें।

बाजार या पैकेट वाले खाने से दूरी रखें। ज्यादा मीठा, तैलीय, या प्रसंस्कृत खाना कम दें। ज्यादा नमक या कोला ड्रिंक बच्चों के शरीर के लिए खतरे की घंटी हैं। स्कूलों में भी जंक फूड की जगह पोषक खाना मिलेगा, इसके प्रति संस्थान, शिक्षक और स्कूल प्रशासन संवेदनशील बनें।

बच्चों के सोने–जागने का समय तय रखें। उनकी नींद पूरी हो रही है या नहीं, मोबाइल का इस्तेमाल सोने से पहले बिल्कुल न हो—इसकी जिम्मेदारी परिवार की है। रात में पर्याप्त नींद बच्चों के दिल, दिमाग और शरीर की मजबूती के लिए जरूरत है।स्कूल स्टाफ, अभिभावकों, बच्चों को बेसिक सीपीआर जैसे प्राथमिक उपचार की जानकारी होनी चाहिए। अचानक अटैक या बेहोशी की स्थिति में तुरंत डॉक्टर या एम्बुलेंस तक पहुँच जरूरी है।

बच्चों के दिल को बचाना सिर्फ एक परिवार या डॉक्टर की नहीं, पूरे समाज की ज़िम्मेदारी है। स्कूलों को बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण और नियमित चेकअप को सिलेबस जितना ही जरूरी मानना होगा। खेलकूद और माइंडफुलनेस गतिविधियाँ हर कक्षा में होना चाहिए।सरकारें समय-समय पर वेलनेस कैम्प, मुफ्त जांच, कार्डियक हेल्थ अवेयरनेस कार्यक्रम चलाएँ। सामाजिक संस्थायें, मीडिया, स्वास्थ्य विशेषज्ञ मिलकर रिसर्च, जागरूकता और समय समय पर बच्चों और अभिभावकों के लिए वर्कशॉप्स करें।

बचपन में दिल की बीमारी भले ही दुर्लभ है, पर बढ़ती लाइफशैली समस्याओं के चलते अब यह खतरे की घंटी बन गई है। बदलती दुनिया ने बच्चों का बदन ही नहीं, उनकी आदतें और खान-पान भी बदल दिए हैं। परंतु, हर बीमारी से जूझने की ताकत भी हमारे पास है जागरूकता, सावधानी और साझा प्रयासों से।

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